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चुनावी माहौल गरमागरम है। चारो तरफ इतनी चकाकौंध मची है कि दिन होली और रात दिवाली लगती है। सबकी अपनी अलग ही पार्टी है। सब अपनी-अपनी छवि के दर्शाने के लिए नए-नए सफेद वस्त्र में दिख रहे हैं। कोई रैली कर रहा है तो कोई भाषण में व्यस्त है। नये चेहरे भी पहचान बनाने को आतुर हैं और पुराने खिलाड़ी उनका इस्तेमाल करने में माहिर हैं। धर्म से लेकर अधर्म तक सब कुछ इस शतरंजी बिसात की एक गोट है। कब कहां किसका इस्तेमाल होता है, देखते जाइये।
तो चनुाव का गरमागरम माहौल ठंडा तो तभी होगा जब परिणाम आएगा। फिलहाल हम लखनऊ डायरी से लेकर आए हैं, बाबूजी का हाल.. इन सबके बीच बाबूजी सिर पकड़े बैठे हैं।
सदमे में बाबूजी
बाराबंकी वाले बाबूजी आजकल सदमे में हैं। बेटे को विधायकी का चुनाव लड़वाने के लिए क्या-क्या तिकड़म नहीं की, लेकिन सब बेकार गया। जिस पार्टी से एमपी हैं, उसने बेटे को मनचाही सीट से टिकट नहीं दिया। कमल वाली पार्टी ने भी भाव नहीं दिया। दूसरी तरफ जिले के उनके सियासी प्रतिद्वंद्वी ने इस चुनाव में अपने बेटे की लॉन्चिंग करके उनके सामने चुनौती खड़ी कर दी है। करीबी बताते हैं कि बाबूजी ने चुप्पी साध ली है, लेकिन उनके जानने वाले कहते हैं, बड़ी बात नहीं कि खामोशी से ही चुनाव में कोई गुल खिला दें। आखिर हैं तो नेताजी के गोल के ही।
सपा में चल रही जंग में कई लोग ‘चाचा’ की टीम में सक्रिय भूमिका में थे। पार्टी में भतीजे की भूमिका बदलने के बाद अब वे दरकिनार हैं। इनमें से कई अब भतीजे की टीम में शामिल होने के लिए हाजिरी लगा रहे हैं। ऐसे लोगों को यह घुट्टी पिलाकर वापस भेज दिया जा रहा है कि राजनीति करनी है तो व्यक्तिवादी होने की छवि से मुक्त होकर पार्टीवादी बनकर आओ। इसी में कल्याण है।
अफसरशाही के एक आला अफसर कुछ दिन पहले ही रिटायर हुए हैं। हाथी की सवारी और साइकिल का साथ साधने में माहिर यह अफसर फिलहाल खाली हैं। समय कट नहीं रहा, लिहाजा भविष्य का समीकरण सेट करने में लग गए। अब साइकिल की चिंता छोड़ अपने हाथी वाले ‘साहब’ के दरबार में मत्था टेक रहे हैं। कुछ इलाकों का हालचाल साहब ने बताया, कुछ का फीडबैक रिटायर्ड अफसर ने साझा किया। वहां बैठे-बैठे चार जिलों के आला अफसरों से फोन कर भी फीडबैक लिया और साहब को बताया। बसपा वाले साहब खुश। रिटायर्ड साहब भी खुश। चिंता की बात ये है कि यह मुलाकात सचिवालय के सियासी गलियारे तक पहुंच गई है।
आज लखनऊ डायरी में इतना ही..