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महाराष्ट्र ने अपने स्कूल की किताबों में दिव्यांग लड़कियों के बारे में ये क्या छापा है?

Apoorva Pandey/ firkee.in Updated Fri, 03 Feb 2017 11:09 AM IST
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- फोटो : Wikimedia Commons/Yanajin33
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सोशियोलॉजी यानी सामाजिक विज्ञान। इसमें तो कोई नई बात है नहीं ये तो आप सभी को पता है। इसमें समाज के बारे में पढ़ाई की जाती है। समाज के एक-एक तत्व का बड़ी गहनता से अध्ययन किया जाता है। इसमें भी कोई नई बात नहीं है। तो फिर आप सोच रहे होंगे कि खबर क्या है। दोस्तों खबर वो है जो महाराष्ट्र की 12वीं की सामाजिक विज्ञान की किताब में लिखा है।

इस किताब के एक हिस्से के अनुसार बदसूरत और दिव्यांग लड़कियों को ज़्यादा दहेज़ देना पड़ता है!

तो दोस्तों इतने सालों से जो दहेज लेने-देने की परंपरा चली आ रही है उसके पीछे लड़कियों के बदसूरत होने का हाथ है। आप सोच सकते हैं कि पिछले 2 सालों से हायर सेकेंडरी सर्टिफिकेट बोर्ड एग्जामिनेशन की परीक्षा बच्चे इसी किताब को पढ़कर दे रहे हैं।

एक प्रोफेसर ने बताया कि ये पाठ बच्चों को सबसे बेवकूफ़ी का लगता है। साथ ही टीचर भी पढ़ाते समय इस अंश से आगे बढ़ जाते हैं। राज्य शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े ने इस विषय पर बोलने से इनकार कर दिया। वहीं महाराष्ट्र स्टेट बोर्ड फॉर सेकेंडरी एंड हायर सेकेंडरी एजुकेशन के चेयरपर्सन गंगाधर मामने ने कहा कि हम इस विषय पर बोर्ड से बात करेंगे।
 

इस किताब के अनुसार " अगर कोई लड़की बद्सूरत और दिव्यांग है तो उसकी शादी हो पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। उसे शादी करने के बदले में दूल्हा और उसका परिवार ज़्यादा दहेज़ की मांग करता है। फिर लड़की के असहाय माता-पिता को लड़के वालों को उनकी मांग के अनुसार दहेज देने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इसी वजह से दहेज प्रथा को बढ़ावा मिलता है।"

समझ रहे हैं आप? क्या आपको इससे पहले ये बात पता थी कि सिर्फ़ दिव्यांग लड़कियों को ही दहेज देना पड़ता है? हां अगर किसी लड़की से दहेज की मांग की जाती है तो मतलब वो बदसूरत है। जो लड़कियां इन दोनों ही कैटेगरी में नहीं आतीं उन्हें दहेज नहीं देना पड़ता। इस हिसाब से दुनिया में सारी लड़कियां बदसूरत और दिव्यांग हैं।

इस किताब का कंटेंट लिखने वाला जानता है कि कौन लड़की खूबसूरत है और कौन बदसूरत। इन्होंने ही दुनिया को ब्यूटी कॉन्टेस्ट का कॉन्सेप्ट दिया था और यही उसके जज भी हैं। इतने बड़े बोर्ड की सामाजिक विज्ञान की किताब में ऐसी सामग्री लिखी होने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। उम्मीद है कि ये घटिया बात किताब से हटा दी जायेगी।

इस बात के सही या गलत होने की बात अलग है, ये बात तो तथ्यात्मक रूप से भी सही नहीं है। मेरे ख़याल से इस किताब की पहली कॉपी को किसी ने पढ़ा नहीं होगा। लेकिन इस काम के लिए बाकाएदा एक पैनल बनाया जाता है। जिसमें बड़े प्रोफेसर होते हैं। फिर ऐसी गलती होने का क्या मतलब है जिसका जवाब शिक्षा मंत्री तक न दे पाएं।

हम आशा करते हैं कि किताब के इस हिस्से को जल्द से जल्द बदल दिया जाएगा और पूरी किताब को पैनल एक बार फिर पढ़ेगा।

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