दीपाली अग्रवाल, टीम फिरकी, नई दिल्ली
Updated Sun, 21 Jan 2018 04:24 PM IST
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दुनिया में अच्छाई फैलाने वाले विरले ही होते हैं, लेकिन जो होते हैं दुनिया उनके सम्मान में तत्पर खड़ी रहती है। लोग हमेशा अच्छाई की तारीफ करें ये भी जरूरी नहीं है, लेकिन नेक इरादों के साथ अपने काम को करते रहना चाहिए।
ऐसी ही एक कहानी है 38 साल के 'बॉडी मियां' की जो 2 साल से भी अधिक 'लावारिस लाशों को संभालने, उन्हें मुर्दाघर में शिफ्ट करने, उनका अंतिम संस्कार और दफनाने का काम कर रहे हैं। उनका असली नाम अय्यूब अहमद है और बॉडी मियां नाम उन्हें उनके काम की वजह से मिल गया।
लेकिन उन्होंने यह काम ऐसे ही शुरू नहीं कर दिया। कहीं जाते हुए उन्होंने देखा कि किसी मृत शरीर के पास भीड़ इकट्ठा है, और जब वो लगभग 10 घंटे बाद अपनी नई कार खरीदकर वापस लौट रहे थे तब तक भी लाश वहीं पड़ी हुई थी। उन्होंने वह लाश अपनी नई कार में डाली और शवगृह ले गए।
इसके बाद उन्हें सभी के क्रोध का सामना करना पड़ा। उन्हें समाज से बाहर कर दिया गया। फिर वह बैंगलोर आ गए और वहां एक दिन घूमते हुए उन्हें फिर एक लावारिस लाश दिखी। यहीं से उन्होंने लाशों को दफनाने का काम शुरू कर दिया। अय्यूब का कहना है कि, लोग उन पर और उनके काम पर थूकते थे, उनसे पीठ मोड़ लेते थे। पर अय्यूब ने अपना काम करना नहीं छोड़ा, जबकि उन्हें इस काम का एक पैसा भी नहीं मिलता। वह कभी कुली तो कभी टैक्सी ड्राईवर के काम से ही कुछ पैसा कमा पाते हैं।
इसके अलावा अय्यूब बेघर लोगों के लिए कपड़े और खाना भी लाते हैं। वह अपनी पत्नी के शुक्रगुजार हैं जो सिलाई का काम करके उनका साथ देती हैं और कभी उनके पेशे के बारे में कोई शिकायत नहीं करतीं।
अय्यूब को दुबई सरकार ने उनके निःस्वार्थ काम के लिए सम्मानित भी किया है। जहां दुनिया स्वार्थ में जान-पहचान वालों तक को भुलाये बैठी हैं, वहीं 'बॉडी मियां' लावारिस लाशों को शांति प्रदान कर रहे हैं। उमीद है समाज इस तरह की घटनाओ से कुछ शिक्षा लेगा।