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आज से हर मंगलवार हम आपको अपने पुराने दिनों की सैर पर ले जाएंगे। जिसके लिए हमने सोचा है बॉलीवुड के वो गाने सबसे ज्यादा सही होंगे जो हम पहले गुनगुनाते रहते थे। और इस कड़ी को हमने नाम दिया है, 'मेलोडी मंगलवार'। गाने और उनके पीछे के कुछ किस्से...
15 अगस्त 1975 को एक फिल्म रिलीज़ हुई थी। नाम था शोले। यह फिल्म और इसके सभी केरेक्टर हिन्दुस्तान के फिल्म इतिहास में अमर हो गए। हिन्दुस्तानी लौंडों की ज़बान को एक नया स्टाइल मिल गया था। ये कभी जय हो जाता था, तो कभी वीरू तो कभी बनता था 'गब्बर'। शोले का ज़िक्र क्यों किया है, ये आगे बताऊंगा।
इसके ठीक 5 साल बाद साल 1980 में। फ़िरोज़ खान, ज़ीनत अमान और विनोद खन्ना की एक फिल्म आई थी। फिल्म का नाम था कुर्बानी। फ़िरोज़ खान ने इस फिल्म को खुद डायरेक्ट भी किया था और प्रोड्यूस भी। फ़िरोज़ खान वही हैं, जो वेल-कम में आरडीएक्स बने थे। अच्छा, फिल्म बॉक्स ऑफिस पर उस साल की सबसे बड़ी हिट थी। फिर समय बीता लोग फिल्म को भूल गए। लेकिन नहीं भूले तो एक गाना। जो आज भी अगर बज जाए तो पैर अपने आप ही थिरकने लगते हैं। ये ज़ीनत अमान का वक़्त था। जब वो परदे पर आती थीं तो सिनेमा हॉल सीटियों से गूंजता था।
उस ज़माने में जो लड़के पढ़ते थे और कहीं बाहर हॉस्टल में रहते थे उनके कमरे की ख़ूबसूरती ज़ीनत ही बढ़ाती थीं। वैसे तो राज कपूर साहब ने अपने फिल्मों में बिकिनी को लेकर खूब प्रयोग किए थे। लेकिन ज़ीनत अमान के आने के बाद बॉलीवुड अब बिकिनी को परदे पर उतारना सीख गया था।
पहले ये गाना सुनिए और मज़े कीजिये..
गायक हैं: कंचन जी और अमित कुमार
संगीत है: कल्याण जी और आनंद जी का
और गाने के बोल हैं: इंदीवर के
https://youtu.be/E-7qm4WeH9Q
गाना देख लिया सुन लिया। कुछ ख़ास दिखा? मैंने शोले का ज़िक्र किया था! इस गाने में एक आदमी है, जो बीच में दिखता है। लम्बे बाल, सुलझी हुई दाढ़ी लिए वो ड्रम पीटता है। और ज़ीनत को अपनी आंखों से देखते हुए कहता है, "लैला ओ लैला..ऐसी तू लैला, हर कोई चाहे तुझसे मिलना अकेला"। यह आदमी कोई और नहीं, फिल्म शोले का गब्बर है। अमज़द खान साहब। अमां बहुत जल्दी भूल जाते हो। एक बार फिर से सुनिए। खुद देख लीजिए।
'मेलोडी मंगलवार' आपको उन दिनों की सैर पर ले जाने की कोशिश है, जब टीवी पर दूरदर्शन देखते हुए हम चित्रहार सुना करते थे।
इस कड़ी के लिए कोई सुझाव हो तो स्वागत है...