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टन टना.. बुधू बुधवार में आपका स्वागत है। नये साल में पार्टी कर-कर के बोर हो चुके लोगों के दिलों की हालत कौन समझ सकता है? जवाब है 'फिरकी'.. जी हां छोड़ों कल की बातें; कल की बात पुरानी, बेटों को करना क्या चाहिए फिरकी की जुबानी...
चुनाव आयोग मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के बीच लागातार ‘साइकिल’ को लेकर चल रहे झगड़े का निपटारा कर दिया है। मुलायम सिंह अपने बेटे से बहुत ही परेशान चल रहे हैं, इसी बीच आयोग ने कल मुलायम का पक्ष सुना था और आज अखिलेश का। दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद आयोग ने अखिलेश को साइकिल की ‘घंटी’ चुनाव चिन्ह देने का फ़ैसला किया है, जबकि बिना घंटी की साइकिल मुलायम सिंह को दे दी गयी है।
उधर कैंपेन पे कैंपन कर रहे लगातार राहुल गांधी भी अपनी काबिलियत परोसना चाहते हैं। लेकिन माता जी के दवाब के कारण अपनी बातों को खुल कर नहीं रख पा रहे हैं। इधर मां परेशान है उधर पापा.. अब बेटे करें तो क्या करें..
हम बता रहे क्या करना चाहिए...
दिमाग लगाओ तो परेशानी, न लगाओ ते परेशानी। इन राजनीतिक बेटों को राजनीति में आना ही नहीं चाहिए था। इन्हें फिल्मों में जाना चाहिए था। वहां एक्टिंग को मायने दिया जाता है। इतने अच्छे एक्टर्स राजनीति में आएंगे तो राजनीति एक्टिंग करके ही चलाएंगे न।
तो भईया आपका क्या कहना है, यूपी में चुनाव नहीं महासंग्राम होने वाला है। इन बाप-बेटों की एक्टिंग में कितना दम है। कौन है इस दंगल का असली हीरो?
वैसे, घंटी देने से पहले अखिलेश को पैडल, कैरियर और चेन देने पर भी विचार किया गया था लेकिन साइकिल से अलग होकर ये पार्ट किसी काम के नहीं। घंटी कम से कम बजेगी तो सही!” आयोग की इस दलील के बावजूद अखिलेश इस फ़ैसले से संतुष्ट नहीं हैं। उनका कहना है कि “इससे तो अच्छा था कि चुनाव आयोग मुझे ‘घंटा’ दे देता। वो आवाज़ भी घंटी से ज़्यादा करता और देखने में भी अच्छा भी लगता!”
कैसा लगा बुधू बुधवार ज़रूर बताए, और हां अगले हफ्ते फिर मिलेंगे।