हमारे आस-पास बहुत-सी ऐसी चीज़ें हैं, जिसको हम बराबर देखते हैं। हमारी आंखों के सामने से गुज़रता रहता है। हम सोचते हैं, यार ये क्या है? लेकिन फिर थोड़ी देर बाद सब कुछ नॉर्मल हो जाता है। मतलब हम मान लेते हैं कि यार कुछ होगा, सरकारी रूल। अब उसके स्टैण्डर्ड के हिसाब से काम करना होता है। इसीलिए ऐसा है। लेकिन एक मिनट न अपना दिमाग खर्चना चाहते हैं और न ही कुछ सोचना चाहते हैं।
ऐसी ही एक चीज़ है जो हमारे सामने से रोज़ गुज़रती है। क्या? वो है गाड़ियों के नंबर प्लेट। हर एक नंबर एक दूसरे से बिलकुल अलग। किसी के नंबर प्लेट का रंग कुछ और किसी के नंबर लिखने का अलग रंग। आखिर इन सब का मतलब क्या होता है? नहीं पता है, तो लीजिए ये रहा पूरा डिटेल...
जितने भी कमर्शियल गाड़ियां हैं, जैसे ट्रक या टैक्सी या ऑटो हैं। जो कमाई के लिहाज़ से चलती हैं। उनमें पीले प्लेट पर काले रंग से नंबर लिखने का नियम है। जिससे सड़क पर चलते समय उनकी पहचान हो सके कि ये कोई प्राइवेट टैक्सी थी या किसी की पर्सनल कार।
अच्छा सड़क पर चलते हुए कुछ गाड़ियों में आपने ऐसे प्लेट देखे होंगे जिनमें काले प्लेट पर पीले रंग से नंबर लिखे होते हैं। वो ऐसी गाड़ियों के लिए होते हैं जो आप किराए पर खुद से चलाने के लिए लेते हैं। मतलब कमर्शियल ही लेकिन दूसरे तरह का। अच्छा होटलों की जो अपनी रजिस्टर्ड गाड़ियां होती हैं उनमें भी यही पैटर्न होता है।
अब एक और नंबर प्लेट दिखता है। जो आपको ज्यादातर देश की राजधानी दिल्ली में खूब दिखेगी आमतौर पर, और कभी-कभी कुछ बड़े शहरों में ही। वो है हल्के नीले रंग की प्लेट और उसपर व्हाइट रंग से नंबर लिखे हुए। ये विदेश सेवा के अधिकारी होते हैं जो अपने देश से आकर यहां अपने देश के राजदूत होते हैं। और या फिर यू.एन. के मिशन पर जो लोग यहां काम कर रहे होते हैं।
जैसे ये जो संजय दत्त की गाड़ी का नंबर है। MH 02 CB 4545, इसमें पहला दो लैटर MH गाड़ी किस राज्य से है। उसके बारे में बताता है। जैसे ये MH महाराष्ट्र के लिए कोड है। अच्छा ये कोड कौन तय करता है? इसके लिए एक स्टैण्डर्ड लिस्ट बना के केंद्र सरकार राज्यों को देती है। इसी तरह से बिहार के लिए BR, झारखंड JH, दिल्ली DL, उत्तराखंड UK जो पहले UA हुआ करता था।
अब इसके बाद का दो नंबर। वो ज़िले का सीरियल नंबर होता है। जब गाड़ियों की संख्या सड़क पर लगातार बढ़ने लगी तब अलग-अलग RTO रजिस्ट्रेशन सेंटर को भी अपने-अपने कोड दिए गए।
इसके बाद एक चार अंक का नंबर। जो हर गाड़ी में अलग-अलग होता है। और अगर ये नंबर खत्म होने लगते हैं तब इनके आगे एक लैटर लगा दिया जाता है। फिर जब वो भी खत्म हो जाएं तो दो लैटर का इस्तेमाल किया जाता है।
और एक "IND" लिखा होता है। ये हाई सिक्योरिटी नंबर है। जो RTO के रजिस्टर्ड नंबर प्लेट वेंडर के पास ही मिलता है। और अगर कायदे से लिया गया "IND" नंबर प्लेट हो तो उसके ऊपर एक क्रोमियम प्लेटेड होलोग्राम भी लगा होता है। जिसे हटाया नहीं जा सकता।
अच्छा इतना तो समझ गए होगे। लेकिन एक और तरह का नंबर प्लेट देखने को मिलता है। वो है जिसमें नंबर के शुरुआत में एक ऐरो (तीर) बना होता है! देखे हैं न! अगर आस-पास कोई डिफेन्स बेस या कैंट होगा तो ज़रूर दिखा होगा।
उनके नंबर प्लेट के शुरू में एक ऐरो बना होता है। ये एक्चुअल में ब्रिटिश रूल जो है उसके हिसाब से ही आज भी रजिस्टर किया जाता है। अच्छा एक और बात, डिफेन्स की गाड़ियां मिनिस्ट्री ऑफ़ डिफेन्स से रजिस्टर्ड होती हैं। इन्हें RTO से रजिस्टर कराने की ज़रूरत नहीं होती।सबसे पहला कैरेक्टर होता है, ऐरो। जिसे ब्रॉड ऐरो भी कहा जाता है। इसका यूज़ वही जैसा मैंने बताया कि ब्रिटिश अॉर्डिनेंस कोड से आया है। जिसका यूज़ आज भी ऐसे देश जो पहले अंग्रेजों के गुलाम रहे हैं, करते हैं। और ये सिर्फ़ गाड़ियों में ही नहीं डिफेन्स के दूसरे सामानों पर भी खूब होता है।
इसके बाद जो दो डिजिट होते हैं वो बताते हैं कि किस साल में इस गाड़ी को सर्विस में लिया गया।
इसके बाद बेस कोड होता है। जिससे गाड़ी रियल में किस बेस की है उसका पता चलता है। इसके साथ-साथ गाड़ी का सीरियल नंबर होता है।
अंत में एक कोड होता है जो गाड़ी के क्लास के लिए होता है।
इसके बाद भी और कुछ बचा रह गया है तो कमेंट बॉक्स आपका है। जो नया ज्ञान देना हो दे दें। या फिर कुछ छूट गया हो तो वो भी बता सकते हैं।