समंदर के अंदर ये मंदिर दर्शन देकर हो जाता है गायब, अविश्वसनीय है इसका रहस्य
फिरकी टीम, नई दिल्ली
Published by:
Pankhuri Singh
Updated Mon, 24 Dec 2018 12:05 PM IST
अद्भुत इतिहास, सुंदरता और उनकी विशेष वास्तुकलाओं के लिए दुनिया भर में भारत के मंदिर विख्यात हैं। भारत में अनेक प्राचीन तीर्थ स्थल और मंदिर हैं, जिनका इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है।देश में उन मंदिरों के विषय में सभी जानते हैं जहां अक्सर लोग दर्शन करने जाते हैं लेकिन आप ऐसे अद्भुत मंदिर के बारे में नहीं जानते होंगे जिसमें हजारों रहस्य छुपे हुए हैं जो केवल एक बार दिखाई देने के बाद अदृश्य हो जाता है। जानिए कहां है ये मंदिर, क्या है इस मंदिर का इतिहास और इससे जुड़ी मान्यताएं।
गुजरात में स्थित एक बार दर्शन देने के बाद गायब हो जाने वाले इस मंदिर का नाम स्तंभेश्वर महादेव मंदिर है। इसकी एक बड़ी ही खास बात है जिसके लिए यह मंदिर विश्व विख्यात है। यहां भगवान शंकर का जलाभिषेक करने खुद समंदर आता है। यह मंदिर गुजरात राज्य के वड़ोदरा शहर से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
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- फोटो : सोशल मीडिया
यह मंदिर अरब सागर में खंभात की खाड़ी के किनारे बना है। समुद्र के बीच में स्थित होने की वजह से इसकी खूबसूरती अविश्वसनीय है। यहां समुद्र देवता स्वयं भगवान शंकर का जलाभिषेक करते हैं। लहरों के समय शिवलिंग पूरी तरह से जलमग्न हो जाता है। यहां स्थित शिवलिंग का आकार चार फुट ऊंचा और दो फुट के घेरे वाला है।
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यह मंदिर भारत के सबसे रहस्यमय मंदिरों में से एक है। स्तंभेश्वर महादेव मंदिर को गायब होने वाला मंदिर भी कहा जाता है।इस मंदिर के दर्शन केवल कम लहरों के वक्त ही किए जा सकते है। ऊंची लहरों के समय यह मंदिर डूब जाता है। पानी में डूब जाने के कारण यह मंदिर दिखाई नहीं देता, इसलिए इसे गायब मंदिर कहा जाता है। ऊंची लहरें खत्म होने पर मंदिर के ऊपर से धीरे-धीरे पानी उतरता है और फिर मंदिर दिखने लगता है।
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प्राचीन मान्यताओं के मुताबिक स्तंभेश्वर महादेव मंदिर में भगवान शंकर विराजते हैं इसलिए समुद्र देवता स्वयं उनका जलाभिषेक करते हैं। यहां पर महिसागर नदी का सागर से संगम होता है। स्तंभेश्वर महादेव मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु समंदर द्वारा शिव के जलाभिषेक का दृश्य देखने के लिए आते हैं। समुद्र के इस किनारे पर दो बार ज्वार-भाटा आता है। ज्वार के समय समुद्र का पानी मंदिर के अंदर आता है और शिवलिंग का अभिषेक दो बार कर वापस लौट जाता है।लोगों का कहना है कि यह प्रक्रिया सदियों से चली आ रही है।
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इस मंदिर के समंदर के बीचोबीच स्थित होने के पीछे एक पौराणिक कथा है कि भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय छह दिन की आयु में ही देवसेना के सेनापति नियुक्त कर दिए गए थे। इस समय ताड़कासुर नामक दानव ने देवसेना को परेशान कर रखा था। तब कार्तिकेय ने ताड़कासुर का वध कर दिया। वध के बाद कार्तिकेय को पता चला कि ताड़कासुर शिव का परम भक्त था।
यह जानने के बाद दुखी कार्तिकेय को प्रभु विष्णु ने कहा कि आप वधस्थल पर शिवालय बनवाए। इससे आपका मन शांत होगा।समस्त देवगणों ने एकत्र होकर महिसागर संगम पर विश्वनंदक स्तंभ की स्थापना की। पश्चिम भाग में स्थापित स्तंभ में भगवान शंकर स्वयं विराजमान हुए। तब से ही इस तीर्थ को स्तंभेश्वर कहते हैं।