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सबसे पहले तो आप सभी को महिला दिवस की ढेरों शुभकामनाएं। क्या आपको पता है कि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को असल में अंतर्राष्ट्रीय कामकाजी महिला दिवस के रूप में जाना जाता है। इसकी शुरुआत रूस से हुई और 1975 में इसे यूएस ने भी अपना लिया। जब रूस में महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिला उसके बाद वहां 8 मार्च 1917 को छुट्टी रखी गई थी।
इसीलिए इस दिन को महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। आपको क्या लगता है भारत में इस दिन को क्यों मनाया जाता है? ज़ाहिर है इस दिन पूरे देश में महिला सशक्तिकरण की बात की जाती है। महिलाओं के अधिकारों की बात की जाती है, लेकिन जो लोग ये सारी बातें करते हैं, क्या वही असली भारत है?
अगर हम आपसे पूछें की असली भारत क्या है तो आप भी झट से बता देंगे कि असली भारत तो गांव में बसता है। ये बात बिल्कुल सही है। लेकिन भारत शहरों में भी है। हम असली भारत की बात कर रहे हैं। और असली भारत से हमारा मतलब उन लोगों से है जो गरीब हैं। भारत में निश्चित तौर पर गरीब लोग अधिक संख्या में हैं।
यहां अमीरों और गरीबों के बीच की खाई को पाट पाना बहुत मुश्किल काम है और ये खाई दिन पर दिन और चौड़ी होती जा रही है। समाज के इस तबके से आने वाली महिलाओं को आज महिला सशक्तिकरण की अधिक आवश्यकता है। दिन रात मजदूरी करने वाली महिला से अगर आप महिला दिवस की बात करेंगे तो यकीन मानिए उसे कुछ समझ में नहीं आएगा।
इन महिलाओं को अपने अधिकारों की जानकारी ही नहीं है। ये हर रात अपने शराबी पति से मार खाती हैं। और फिर अगली सुबह काम करने के लिए तैयार हो जाती हैं। घरों में काम करने वाली बाई को हम अपने बगल में नहीं बैठने देते और महिला सशक्तिकरण पर बड़े-बड़े भाषण देते हैं।
आए दिन दलित महिलाओं के शोषण की ख़बरें समाचारों में आती हैं। कुछ सेकंड्स में क्या होगा इस देश का कहकर हम आगे बढ़ जाते हैं। उस वक़्त हमें दलितों और महिलाओं की स्थिति पर बड़ा तरस आता है लेकिन घर में किसी किरायदार को रखने से पहले हम सबसे पहले उसकी जाति पूछते हैं।
इस देश में आज भी लड़कियां अपनी मर्ज़ी से शादी नहीं कर सकतीं, जब पैदा होती हैं तभी से बोझ समझी जाती हैं। ऐसे में महिला दिवस का भला क्या मतलब है। शहरों में लोग लड़कियों को पढ़ाएंगे, मज़बूत बनाएंगे लेकिन अपनी ज़िंदगी के अहम फैसले लेते वक़्त वो गांव की उसी लड़की की तरह हो जाती है जिसे अपने भविष्य का कोई भी फैसला लेने का अधिकार नहीं होता।
कहा जाता है कि लड़कियां बेहद डरपोक होती हैं। कुछ रंगों को भी लड़कियों के लिए रूढ़ कर दिया गया है। लड़के इन रंगों और कुछ कामों से दूर भागते हैं। जब हम एक रंग को लड़की का मानकर उससे दूर भाग सकते हैं तो भला हम उनकी भावनाओं को कैसे समझ पाएंगे?
जो देश आज हमें महिला दिवस मनाते हुए दिख रहा है न, वो असली भारत से कोसों दूर है। जिस महिला को स्वास्थ्य सुविधाएं तक मुहैया न हो पाती हों, भला वो महिला दिवस क्या मनाएंगी। जिस देश में रेप के लिए लड़कियों को दोषी माना जाता है, भला वो देश महिला दिवस क्या मनाएगा।
इस देश के लोगों को जिसमें पुरुष और महिला दोनों शामिल हैं, पहले अपनी सोच को बदलना होगा, उसके बाद जाकर महिला दिवस मनाने का कोई मतलब बनता है। जिस दिन देश की हर लड़की अपनी शिक्षा पूरी कर पाएगी और सड़क पर किसी भी समय निडर होकर चल पाएगी, उस दिन महिला दिवस मनाने का अधिकार इस देश को प्राप्त होगा।