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क्रिकेट का खेल होता तो मजेदार है। टुक-टुक वाली पारी कब रोमांचक स्थिति में पहुंच जाती है पता ही नहीं चलता। अच्छा खेलने वाले हारी हुई बाजी जीत जाते हैं और जरा सी लापरवाही से जीती जीताई बाजी हाथ से निकल भी जाती है। घंटों तक खेले जाने वाले इस खेल को कुछ ही देश खेलते हैं। इस खेल की ऐसी रंगत है कि टॉप वाला फिसल कर बॉटम में आ जाता है और बॉटम वाला कूद कर टॉप पर पहुंच जाता है। अब ऑस्ट्रेलिया की ही क्रिकेट टीम को ले लें।
एक वक्त था जब कंगारू हर ट्रॉफी पर कूद फांद कर कब्जा कर ही लेते थे, लगता था कि इस टीम को हराना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। जिस देश में जाते थे, वहां जीत जाते थे। अपने यहां किसी को बुलाते तो हरा देते थे। अब वहीं कंगारू बकरी की तरह मिमियाते हुए दिखाई दे रहे हैं।
एक समय में ऑस्ट्रेलिया के नाम लगातार मैच जीतने के रिकॉर्ड हुआ करते थे, आजकल उनके खाते में दनादन हार लिखी जा रही है। रांची में ऑस्ट्रेलिया ने लगातार 7वां टी-20 मैच हारा था। साल 2012 में ऑस्ट्रेलिया ने आखिरी टी-20 सीरीज जीती थी।
वनडे में भी उनका ऐसा ही कुछ हाल है। जिन कंगारुओं को एशियाई धरती पर रन बनाने में मौज आती थी, वो इसी धरती पर 11 वनडे लगातार हार चुके हैं। 02 मैच बेनतीजा रहे और बड़ी मुश्किल में 14वां मैच जीता… जोकि बैंगलुरू में खेला गया था।
लोचा टीम में कम, कप्तानी में ज्यादा दिखाई देता है। ये ही खिलाड़ी जब आईपीएल में किसी टीम की अगुवाई करते हैं तो गजब की स्ट्रैटजी के साथ खेलते हैं। जब ऑस्ट्रेलिया का बुरा दौर शुरू हुआ था तो डेविड वॉर्नर की कप्तानी में सन राइजर्स हैदराबाद ने आईपीएल का कप झटक लिया था। हार का सिलसिला जब तेजी पकड़ रहा था तो स्मिथ की कप्तानी में राइजिंग सुपर जाइंट की टीम फाइनल में पहुंची थी, कुल मिलाकर देखा जाए तो ऑस्ट्रेलिया के कप्तान बाहर तो सही खेल रहे हैं लेकिन जब अपनी टीम के लिए कप्तानी करते हैं तो मामला गड़बड़ा जाता है।
फिलहाल पांच बार की विश्व विजयी टीम को मेहनत के साथ-साथ ऊपरवाले के आशीर्वाद की भी जरूरत है।