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हिंदुस्तान में अंग्रेजी के प्रति दीवानगी अंग्रेजों के जाने के बाद जैसे बढ़ गई। कोर्ट कचहरी से लेकर हर दफ्तर में लिखने-पढ़ने की भाषा अंग्रेजी हो गई। यहां तक की हिंदी पट्टी की बसों में टिकट भी अंग्रेजी में ही छपा होता है। गांव का कउआ भी अगर अंग्रेजी में कांव कर दे तो उसके प्रति भी लोगों में आकर्षण देखते ही बनता है। अंग्रेजी के चार शब्द टिपिर-टिपिर करने पर जैसे लोगों में किसी अंग्रेज अफसर की आत्मा घुस जाती है, ऐसा महसूस होता है। लेकिन कितना भी बड़ा अंग्रेज हो (ये वाला हिंदी पट्टी का), कुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं जब वह हिंदी में अपने आप आ जाता है। हिंदी दिवस पर खास हम ये परिस्थियां यहां गिना रहे हैं। अगर आपके पास भी कुछ सुझाव हों तो हमारे कमेंट्स बॉक्स में साझा करें।
लड़का चाहें बचपन से लेकर जवानी तक अंग्रेजी माध्यम में पढ़ा हो। उठते-बैठते अंग्रेजी ही बोलता हो। लेकिन अगर उसका वास्ता किसी हिंदी पट्टी के इलाके से है तो सोते से जगाने पर वह सबसे पहले जो बोलेगा, वह हिंदी में ही होगा। अब इस बात पुष्टि करने के लिए आप जानबूझकर ऐसा मत करना। वरना गालियां खाने का जोखिम हो सकता है।
गुस्सा उगलने के लिए भी सबसे मुफीद हिंदी ही होती है। गालियां जितनी कायदे से लोग हिंदी में देते हैं, अंग्रेजी में शायद ही दे पाएं।
अचानक मरने से बच जाएं तो मुंह से हिंदी है निकलती है। ... और पहले शब्द मम्मी... पापा... हे भगवान आदि होते हैं।
कितना भी बड़ा तुर्रम खां हो, पुलिस का डंडा चलने पर हिंदी में आ जाता है। चौराहे पर चालान कटने पर पहला वाक्य निकलता है, अरे साहब कुछ बीच का रास्ता निकाल लीजिए न?
हिंदुस्तानी लड़कों में एक बात सामान्य होती है कि उम्र के एक पड़ाव पर उनकी कुटाई बहुत होती है। चाहे स्कूल में हो, घर में हो या लड़की को छेड़ते वक्त... मुंह से अंग्रेजी नहीं, हिंदी ही निकलती है।
मंदिर में भगवान के सामने हाथ जोड़कर हिंदी में जितने अच्छे से मन्नत मांगी जा सकती हैं, वह शायद अंग्रेजी में संभव नहीं। ...और फिर हमारे भगवान भी कहां अंग्रेजी में समझते हैं।
भारतीय शादियों में भी एक बात सामान्यता देखने को मिल जाती है कि किसी ने किसी वजह से फूफा रूठ जाते हैं। ऐसे में रूठे फूफा को मनाने के लिए हिंदी ही काम आती है।
आप मर्सडीज ही क्यों न खरीद लें, लेकिन जब ऑटो से चलें और ऑटो वाले के पास आपको लौटाने के लिए दो-एक रुपये खुल्ले कम पड़ जाएं तो उस वक्त ड्राइवर से आप नोकझोंक अंग्रेजी नहीं, हिंदी में ही करते हैं।
गोलगप्पे खाते हैं तो बाद में पानी और पापड़ी मांगने की आदत आपकी न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। ऐसे वक्त में हिंदी ही सबसे मुफीद भाषा होती है। बोलना सिर्फ इतना होता है- भईया जरा पानी देना और एक पापड़ी।
कितना भी बड़ा अंग्रेज क्यों न हो, कुत्ता पीछे पड़ जाए तो आदमी के मुंह से हिंदी ही निकलती है।