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मंत्री और नाइट ड्यूटी। सुनने में थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन स्वतंत्र प्रभार के एक राज्यमंत्री को उनके ही दल से ताल्लुक रखने वाले उनके पड़ोसी जिले के नेता ने रात 9.30 बजे फोन मिलाया तो यही जवाब मिला। दो-तीन बार पूरी घंटी जाने के बाद निजी सचिव ने बिना कुछ सुने कहा, मंत्रीजी नाइट ड्यूटी पर हैं। नेताजी को बात कुछ हजम नहीं हुई। लगा, कहीं रॉन्ग नबंर तो नहीं मिला दिया। दुबारा फोन लगाया तो बताया गया कि मंत्रीजी की रात में प्रेजेंटेशन देखने की ड्यूटी लगी हुई है। फोन भी नहीं सुन सकते। आपका मैसेज दे देंगे। योगी राज में यही 6 से 8 घंटे की नाइट शिफ्ट है।
क्या कार्रवाई करके ही हटाएंगे
सरकार के नए मुखिया आए दिन किसी न किसी जांच का आदेश कर रहे हैं। जांच, कार्रवाई का आदेश उन्हीं अधिकारियों को कर रहे हैं जिनके समय की शिकायत है। अफसरों की सांसत बढ़ती जा रही है। ऐसी ही उलझन से बेजार एक सीनियर अधिकारी का दर्द छलक पड़ा। बोले- कोई जांच शुरू कराई जाती है तो संबंधित अफसर को उस पद से हटा दिया जाता है, पर सरकार तो अलग ही नुस्खा आजमा रहे हैं। उन्हें हटाने की जगह उनको बनाए रखते हुए जांच का आदेश कर रहे हैं जिनकी सरपरस्ती में गुनाह का शक किया गया। लग रहा है कि इन्हीं अफसरों को अपने खिलाफ चार्जशीट भी तैयार करने को कहेंगे और फिर जवाब आने पर कार्रवाई का आदेश थमाकर ही विदा करेंगे। हालांकि वे यह भी कहते हैं कि ऐसा चलता है क्या? ऐसे ज्यादा दिन नहीं चल सकता?
बहुत कठिन है डगर...
सत्ता के गलियारे में आजकल अजब-गजब रंग नजर आ रहे हैं। भगवा सरकार में सबसे ज्यादा पसोपेश में ब्यूरोक्रेट नजर आ रहे हैं। बड़े सयाने माने जाने वाले कई नौकरशाह भी ‘सरकार’ का मिजाज नहीं भांप पा रहे हैं। एक वाकये की चर्चा सत्ता के गलियारे में खूब तैर रही है। एक वरिष्ठ नौकरशाह के बैठने का अंदाज ‘सरकार’ को नागवार गुजरा। भरी बैठक में तो कुछ नहीं कहा लेकिन बैठक खत्म होते ही कुछ मंत्रियों के सामने उनकी क्लास जरूर ले ली। बेचारे अफसर की बोलती बंद हो गई। विभागीय मंत्री की हरी झंडी लेकर जो फाइल ‘सरकार’ के अनुमोदन के लिए ले गए थे, उसे बगल में दबाए ही लौट आए। लिफ्ट में एक साथी अफसर मिल गए तो बड़ी मायूसी से बोले, अब तो बड़ी मुश्किल हो गई। किस-किस बात का ख्याल रखें। साथी अफसर भी कुछ इसी दौर से गुजर चुके थे। सुर में सुर मिलाते हुए बोले-भई, बहुत कठिन है डगर...।
गेंद नेताजी के पाले में
वर्षों से साइकिल की सवारी करने वाले बेचैन हैं। चाचा-भतीजे, दोनों अब भी तलवार भांज रहे हैं। दोनों तरफ से आर-पार के संकेत हैं। वजीर रह चुके कई साइकिल सवार हालात भांप रहे हैं, कुछ सक्रिय भी हो गए हैं। ‘चाचा’ से मिलने आए एक पूर्व मंत्री कह रहे थे, हार के बाद भी ‘इगो’ का टकराव लगता है बहुत भारी पड़ने जा रहा है। गेंद अब नेताजी के पाले में है। लड़ाई उनके सम्मान की है। उनकी हरी झंडी मिलते ही ऑपरेशन शुरू हो जाएगा। उनके नाम पर नए दल के गठन में दिन ही कितने लगेंगे? उनके साथ आए पूर्व विधायक ने आशंका जताई कि ऐन वक्त पर बेटे का मोह हावी हो गया तो...। पूर्व वजीर बोले-देखते जाइए, आगे-आगे होता है क्या?
गणेश परिक्रमा का दौर...
नई सरकार ने रिटायरमेंट के बाद नौकरी में लगे तमाम लोगों को पैदल कर दिया। सरकार के इस फैसले से भगवा गोल से जुड़े तमाम लोगों की उम्मीदें जवां हो गईं। एक दरबारी बताते हैं कि आजकल पांच कालिदास से पंचम तल तक व्यक्तिगत मिलने आने वालों में रिटायर हो चुके अफसरों की अच्छी तादाद है। वह शुभकामना देते हैं। महराज कोई काम पूछते हैं तो इन्कार करते हैं। पर, जब चलने को होते हैं तो यह जरूर कहते हैं कि महराज हम खाली हैं। हमारी सेवा का कोई अवसर होगा तो जरूर याद कीजिए। वह अपनी विशेषज्ञता पहले ही बता चुके होते हैं। महराज हंसकर सभी को विदा कर देते हैं।
संघं शरणं गच्छामि
करीब 20 के साल राजनैतिक कॅरिअर में कभी भी संघ परिवार के दरवाजे तक न जाने वाले एक विधायकजी इन दिनों संघ की शरण में हैं। उनकी मजबूरी यह है कि पहली बार वह हाथी वाली पार्टी से चुनाव जीते थे और दूसरी बार निर्दल विधायक बने थे। इस बार वह भगवा दल से चुने गए हैं। लिहाजा उनकी भी इच्छा है कि अन्य दलबदलुओं की तरह उन्हें भी वजीर-ए-आला की टीम में जगह मिल जाए, लेकिन उनकी दबंग छवि उनकी हसरत के आड़े आ रही है। पूर्वांचल से ताल्लुक रखने वाले विधायकजी अब अपनी हसरत पूरी करने का रास्ता संघ परिवार के जरिए निकलने का प्रयास कर रहे है। चर्चा है कि काशी प्रांत के नए मुखिया के पास उन्होंने अपनी अर्जी लगा दी है लेकिन उनको कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला है। अब वह संघ के दूसरे नेताओं का भी लिंक तलाशने में जुटे हैं।
रंग बदलना तो यहां की फितरत है
कभी समाजवादी सीएम ‘बुआजी’ के हाथी वाले पार्कों पर खूब व्यंग्य कसा करते थे। उनके कार्यक्रमों में मौजूद अधिकारी, कर्मचारी और आम लोग भी इस पर खूब हंसा करते थे। हाल ही में केसरिया चोले वाले सीएम ने केजीएमयू में समाजवादी सीएम की गोमती रिवर फ्रंट परियोजना पर खूब तंज कसे। यह भी कहा कि सारे अच्छे डॉक्टर तो सैफई मेडिकल कॉलेज भेज दिए गए। इस पर कार्यक्रम में मौजूद लोग खूब हंसे। एक डॉक्टर साहब कहने लगे-हाकिमों का रंग बदलते ही अपना रंग बदलना तो कोई यहां के अवाम से सीखे। ऐसे पलटते हैं कि भरोसा ही नहीं होता...।
-दर्शक