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सचिवालय की ‘त्रिमूर्ति’ का जलवा
सर्विस में सबके लिए तबादला नीति आती है। पर सचिवालय प्रशासन का केंद्रीय अनुभाग इस व्यवस्था से मुक्त रहता है। इस अनुभाग का काम सरकार चलाने वालों से शासन चलाने वालों तक को निजी स्टाफ देना होता है। यह काम यहां तीन लोग मिलकर कर रहे हैं। इनमें कोई दो दशक से है तो कोई एक दशक से। निजी स्टाफ से जुड़े हर कर्मी की जुबान पर इनके जलवे की चर्चा आम है। पोस्टिंग दिलाने के इनके पारदर्शी फॉर्मूले की भी हर कोई दाद देता है। इधर सरकार के दरबार से कुछ निजी स्टाफ की विदाई के बाद ये फिर चर्चा में आ गए हैं। एक अफसर बताते हैं कि ये इतने पावरफुल हैं कि इन तीन में से एक की भी सीट नहीं बदली जा सकती। इनके तबादले की चर्चा शुरू होते ही मंत्री से लेकर संतरी तक बनाए रखने की पैरवी में जुट जाते हैं।
शाहखर्ची वाले ‘साहब’
‘सरकार’ मितव्ययिता की नसीहत देते-देते परेशान हैं। खुद सामान्य जीवन जीना पसंद करते हैं, लेकिन आला हाकिम उसकी हवा निकालने में जुटे हैं। वह भी सरकार की नाक के नीचे। दरअसल, सरकार एनेक्सी के पंचम तल पर बैठते हैं। आला हाकिम प्रथम तल पर तशरीफ लाते हैं। सरकार को पूरी तरह से साधने के बाद विभाग की पूरी गैलरी में रेड कॉर्पेट बिछवा दी थी। इसके बाद उनका जलवा देखने लायक था। किसी दूसरे विभाग को आज तक रेड कॉर्पेट नसीब नहीं हुआ। अब साहब को यह यकीन हो गया है कि उनकी मुखिया वाली कुर्सी भी पूरी तरह महफूज हो चली है। सरकार की कृपा बरस रही है। लिहाजा इस दफ्तर में भी रेड कॉर्पेट बिछवाकर अपने शाहखर्ची वाले इरादे का इजहार कर दिया है।
बैक डोर की जिम्मेदारी से मंत्रीजी प्रफुल्लित
लिखा-पढ़ी में एक मंत्रीजी के पास तो सिर्फ दो ही विभाग है, जिसमें एक विभाग शहरों के विकास से जुड़ा है तो दूसरा हाउस के संचालन से। इसके बावजूद मंत्रीजी इन दिनों फाइलों के बोझ तले दबे हैं। वजह यह है कि सरकार ने कई समितियों का अध्यक्ष बनाकर मंत्रीजी की जिम्मेदारी बैक डोर से बढ़ा दी है। मंत्रीजी की भी पीड़ा है कि काम इतना लाद दिया गया है कि वह रात को 2 बजे से पहले सो नहीं पाते हैं और सुबह 5 बजे से फोन करके सवाल-जवाब होने लगता है। फिर भी वह बैक डोर से मिली जिम्मेदारी को लेकर खुश हैं। कहते हैं यह वजीर-ए-आला का खास होने का संदेश भी तो है।
क्या अध्यक्षी की दौड़ में हूं?
वेस्ट यूपी के दलित सांसद भगवा खेमे के दफ्तर में थे। पहले बसपा और रालोद में भी है चुके हैं। वे एक पुराने भाजपा नेता से मिले। पूछा, क्या मेरा नाम भी प्रदेश अध्यक्ष के लिए विचाराधीन है। उन्होंने कहा, क्यों नहीं ? आप पढ़े-लिखे हैं, बहनजी के वोट बैंक को तोड़ना है तो दलितों में उनके समाज के नेता को आगे करना होगा। पास ही खड़े एक खांटी भाजपाई उनकी बात सुन मुस्करा रहे थे। धीरे से कहा, एमपी साहब को नहीं पता ये भाजपा है। यहां यूं ही अध्यक्ष नहीं बन जाते। काडर वालों का नंबर आ नहीं रहा, बाहर वालों को कौन अध्यक्ष पद से नवाज देगा। सांसद के एक करीबी ने उनकी बात सुन ली। वह बोले तो कुछ नहीं, लेकिन उनकी हां में हां मिलाते हुए कहा ये दावेदार नहीं हैं। कुछ लोग नाम चला रहे थे, इसलिए बस पूछे रहे थे।
एक नहीं पांच वाहनों का काफिला
वजीर-ए-आला ने अपनी टीम के मंत्रियों को भले ही एक सरकारी वाहन का उपयोग करने की हिदायत दी हो, लेकिन कई मंत्री ऐसे हैं जो अपने अधीन वाले सभी विभागों से वाहनों का काफिला लेकर चल रहे हैं। मसलन, घर मकान बनाने वाले विभाग के दूसरे दर्जें वाले मंत्री को ही देख लें, जिनके पास राज्य संपत्ति विभाग द्वारा उपलब्ध कराई गई लग्जरी गाड़ी तो है ही, साथ ही उन्होंने विभाग से भी दो वाहन अपने साथ अटैच कर रखे हैं। चर्चा तो यह भी है कि मंत्रीजी का घर राजधानी से कुछ ही दूरी पर है। इसलिए उनके परिवारीजनों की सेवा में दो वाहनों को लगा दिया गया है। चूंकि इस महकमे के बड़े मंत्री भी वजीर-ए-आला हैं इसलिए वह तो विभाग को देख नहीं पा रहे हैं। इसलिए छोटे मंत्री ही विभाग का लुत्फ उठा रहे हैं।
चर्चा में ये चिट्ठी
सड़क वाले महकमे में इन दिनों आला अधिकारी का एक पत्र खूब चर्चा में है। इसमें महकमे से उन परियोजनाओं की सूची मांगी गई है, जिनका लोकार्पण किया जा सकता है। महकमे के लोगों का कहना है कि सरकार ने निर्माणाधीन किसी परियोजना के लिए एक नया पैसा जारी नहीं किया। नतीजतन, कोई परियोजना लोकार्पण की स्थिति में है ही नहीं। ऐसे में लोकार्पण हो सकने वाली परियोजनाओं की सूची मांगने का क्या औचित्य? फिर जब बजट नहीं दिया तो पिछली सरकार के कामों की खुद वाहवाही लूटने में कहां की समझदारी!
वफादारी दिखाने की होड़
पंजे वाली पार्टी में भी गजब हाल हैं। यहां आमजन के मुद्दे उठाने में भले ही इस पार्टी के नेता पीछे हों, लेकिन जब बारी वफादारी दिखाने की आती है तो होड़ सी लग जाती है। कुछ ऐसे भी नेता हैं जो प्रदर्शन इसलिए करते हैं ताकि अखबारों में नाम छप जाए और वे अपनी वफादारी का नमूना अपने आकाओं को दिखा सकें। बात पिछले दिनों की है जिसमें युवराज से जुड़े दो वाकये हुए। पहले वाकये में पूर्व पीएम की मूर्ति खंडित कर दी गई। फिर क्या था पंजे वाली पार्टी के नेता घर से बाहर निकल आए। दूसरा मामला पड़ोसी राज्य में उन्हें किसानों के मसले पर मौके पर जाने से रोक दिया गया। इस मसले पर भी प्रदेश के नेताओं ने मीडिया में खूब वफादारी दिखाई।
चाचा पर लगा दांव
साइकिल सवारों के दफ्तर के भीतर कम, बाहर ज्यादा सियासत होती है। चाचा की कोठी पर जाने वाले लोग साइकिल वालों के दफ्तर कम जाते हैं। मैनपुरी से आए लोग सेकुलर फ्रंट की चर्चा में मशगूल थे। उनके बीच से ही एक युवा नेता ने कहा, खुशफहमी में न रहिए सेकुलर फ्रंट के गठन से पहले चाचा को एक बार फिर झटका लगने जा रहा है। उन्हें फ्रंट बनाने का इरादा टालना पड़ रहा है। उन पर समर्थकों का दवाब है, लेकिन ऐसा पहली बार नहीं है कि अपनी घोषणा से कदम पीछे हटाना पड़ रहा है। उनके साथ आए दो-तीन लोगों ने पलटकर कहा कि फ्रंट बनाने से रोक कौन रहा है ? युवा नेता ने कहा, चाचा नेताजी के हनुमान हैं। वे कुछ भी करें, लेकिन नेताजी के खिलाफ नहीं जा सकते। नेताजी हैं कि परिवार में संतुलन बनने के चक्कर में ओर-छोर ही नहीं दे रहे। पता नहीं, किस दांव की तैयारी में है। वे कुछ भी करें, लेकिन दांव तो चाचा पर लग रहा है।
बड़े साहब के बाद छोटे साहब की क्लास
पिछले दिनों सीएम सुरक्षा में चूक और विरोध-प्रदर्शन राजधानी के डीएम व एसएसपी के लिए मुसीबत बन गया। दोनों अधिकारी लगातार दो दिन तलब किए गए। दूसरे दिन समीक्षा के नाम पर पहले गृह विभाग के सबसे बड़े अफसर ने राज्य के पुलिस मुखिया के साथ मिलकर राजधानी के अधिकारियों की क्लास ली। मीटिंग खत्म हुई तो उन्हीं के महकमे के छोटे साहब ने दोनों अधिकारियों को अपने ऑफिस में बुला लिया और नाराजगी इन अधिकारियों पर उतारी। छोटे साहब ने तो यहां तक चेतावनी दे दी कि इस बार तो बच गए, लेकिन दोबारा ऐसी गलती हुई तो कोई नहीं बचा पाएगा। प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि इस दौरान राजधानी के दोनों बड़े अफसर छोटे साहब के सामने यस सर, यस सर करते रहे।
-दर्शक