Home Panchayat Lucknow Diary Satire On Uttar Pradesh Politics And All

लखनऊ डायरी: विधायक जी नहीं मानते नसीहत और निकाय चुनाव पर जीएसटी का असर

Updated Mon, 06 Nov 2017 03:40 PM IST
विज्ञापन
Lucknow Diary: Satire on Uttar Pradesh Politics and all
विज्ञापन

विस्तार

...तो याद आए भगवान  
सचिवालय में एक मंत्री के दफ्तर में साइकिल सवार पूर्व विधायक किसी काम से पहुंचे ही थे कि भगवा खेमे के एक प्रवक्ता भी आ गए। दोनों पुराने परिचित हैं, सो खुशनुमा माहौल में सियासी चर्चा चल निकली। पूर्व और मौजूदा वजीर-ए-आला की पैरोकारी करते-करते चर्चा धर्मस्थलों के दौरों पर आकर केंद्रित हो गई। साइकिल सवार जोर देकर कह रहे थे कि हम भी कम धार्मिक नहीं हैं लेकिन इसका प्रचार नहीं करते। भगवा ब्रिगेड के प्रवक्ता ने कहा, योगी के सीएम बनने पर यही तो बदलाव आया है। जो धर्म के मामले में चुप्पी साधते थे, वे धार्मिक क्रियाकलापों की ब्रांडिंग करने लगे हैं।  
 
सेर पर सवा सेर 
निकाय चुनाव की तैयारियों में पिछड़े पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक जिले के डीएम ने निर्वाचन आयोग को चकमा देने की चाल चलने की कोशिश तो की लेकिन जैसे ही उन्हें आभास हुआ कि यह उन्हें उल्टा पड़ने जा रहा है, कदम पीछे खींच लिए। बृजभूमि में तैनात डीएम साहब ने सत्ता में बैठे अपने सियासी आका के इशारे पर निर्वाचन आयोग के एक अफसर से यह कहते हुए थोड़ी मोहलत मांगी कि अभी डेढ़ लाख वोटरों के नाम लिस्ट में जुड़ने से रह गए हैं। अफसर ने आयोग के मुखिया को बताया तो वह माजरा समझ गए। मुखिया ने अफसर से कहा कि डीएम साहब से कहो कि यही लिखकर भेज दें। अफसर ने डीएम साहब को फोन कर लिखित रूप में भेजने को कहा तो उनके पसीने छूटने लगे। उन्हें भनक लग गई की कि उनकी कारगुजारी आयोग जान गया है और नेताजी के इशारे पर आयोग को चकमा देने की चाल से नौकरी पर भी बन सकती है। सो, तुरंत कदम पीछे खींच लिए। 
 
विधायक नहीं मानते नसीहत 
देश व प्रदेश के मुखिया भले ही अपने दल के विधायकों को ईमानदारी से काम करने की नसीहत दे रहे हों, लेकिन कुछ विधायकों पर इस नसीहत का कोई असर नहीं दिख रहा। बिहार सीमा से सटे जिले के दबंग छवि के एक विधायक जी जिले के हर काम में अपनी भूमिका तय करने के लिए किसी हद तक जाने को तैयार हैं। अपने लोगों से कहते भी हैं कि अगर उनकी भूमिका का दायरा नहीं बढ़ेगा तो लाव-लश्कर का खर्च कहां से आएगा। हाल में उनके जिले के जिला पंचायत अध्यक्ष ने भी यही गलती की तो उनकी शिकायत वजीर-ए-आला तक पहुंच गई। इसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि जिला पंचायत द्वारा खनन सामग्री पर वसूली जाने वाली रॉयल्टी अवैध है। हालांकि हाईकोर्ट इसे वैध ठहरा चुका है। अब विधायक जी को कौन समझाए कि इससे पहले जिला पंचायत पर उनके परिवारीजनों का कब्जा था और वे भी यही काम करते थे, तब रॉयल्टी वसूलना वैध कैसे हो गया था?

बेटी की खातिर सब कुछ जायज 
प्रदेश के खजाने को भरने वाले विभाग के बड़े साहब इन दिनों अपनी बेटी को लेकर चर्चा में हैं। वैसे तो साहब की छवि साफ-सुथरी रही है, लेकिन अपनी डॉक्टर बेटी का अस्पताल बनवाने में उनकी भूमिका को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं हैं। एक चर्चा के मुताबिक साहब की बेटी का अस्पताल एनसीआर क्षेत्र में बनना है, इसलिए निर्माण की जिम्मेदारी साहब ने ले रखी है। कहा जा रहा है कि इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए ही साहब ने स्थानांतरण सीजन के बाद बड़े पैमाने पर अधिकारियों के तबादले का प्रस्ताव तैयार कराया था। हालांकि उनके मंसूबे पर तब पानी फिर गया जब वजीर-ए-आला ने सवाल उठा दिया कि ये तबादले स्थानांतरण सीजन में क्यों नहीं हुए? अब वजीर-ए-आला को कौन समझाए कि सीजन में तबादले किए होते तो अस्पताल कैसे बनता? 
 
 ...तो हो जाएंगे तीन डीजी
पुलिस महकमा आने वाले दिनों में सीनियर पुलिस अधिकारियों की अधिकता को लेकर अभी से चिंतित है। अगले दो-तीन साल में पुलिस महकमें में आईजी और एडीजी स्तर के इतने अधिकारी हो जाएंगे कि मुख्यालय पर उनके बैठने की जगह नहीं होगी। पिछले हफ्ते एक मीटिंग के दौरान डीजीपी के सामने चर्चा छिड़ी तो उन्होंने भी एक फॉर्मूला सुझा दिया। बोले, कई विंग में दो-दो तरह के काम हैं। वहां अलग-अलग डीजी तैनात कर दिए जाएंगे। मसलन रूल्स एंड मैन्युअल दो विंग हैं। यहां एक डीजी रूल्स हो जाएगा और एक डीजी मैन्युअल। संख्या फिर भी अधिक रही तो एक डीजी एंड बनाया जा सकता है जो रूल्स और मैन्युअल के बीच तालमेल रखने का काम करेगा। डीजीपी का यह आइडिया सुन अफसरों के ठहाके गूंज उठे।

जीएसटी का असर  
हैंडपंप वालों ने जोर-शोर से घोषणा की थी कि निकाय चुनाव में सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारेंगे। नामजदगी की तारीख नजदीक है लेकिन चुनिंदा सीटों पर ही उम्मीदवार मिल पाए हैं। एक नेता से उम्मीदवारों की सूची के बारे में पूछा गया तो बोले, जीएसटी का असर है। दुकान सजी है, ग्राहकों का इंतजार कर रहे हैं। हमारे पास माल है लेकिन खरीदार नहीं हैं। जीएसटी के बाद छोटी फर्मों के सामने ज्यादा दिक्कतें जो आई हैं। बड़ी फर्में तो ग्राहकों से जीएसटी वसूल रही हैं लेकिन छोटे दुकानदार क्या करें? हैंडपंप से पानी की धार की उम्मीद लगाए रखने वाले पश्चिमी यूपी के एक नेता ने तपाक से कहा, हमारी फर्म छोटी जरूर है लेकिन हमें रिटर्न फाइल करने में कोई दिक्कत नहीं है। हमारे नेता उस जमाने के टेक्नोक्रेट है, जब कम ही लोग आईआईटी जैसे संस्थानों से निकलते थे। जीएसटी का असर पड़ा है लेकिन हैंडपंप से पानी निकलेगा।

शुरू हो गया कमियां ढूंढो अभियान
हरियाली बढ़ाने वाले महकमे में इन दिनों सभी अधिकारी एक-दूसरे की कमियां ढूंढने में जुटे हुए हैं। कौन कहां जा रहा है, क्या कर रहा है और काम करने के पीछे की मंशा क्या है? एक समझदार अधिकारी ने इसकी वजह ढूंढने की कोशिश की तो बड़ी ही हैरत में डालने वाली जानकारी मिली। दरअसल, एक उच्चाधिकारी ने सभी को अलग-अलग बुलाया। प्रत्येक अधिकारी को अपना खास बताते हुए कहा-मुझे फीडबैक दो कि कहां क्या चल रहा है। कौन मेरे खिलाफ काम कर रहा है। ...फिर क्या था, शुरू हो गया कमियां ढूंढो अभियान।
 -दर्शक

विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन

Disclaimer

अपनी वेबसाइट पर हम डाटा संग्रह टूल्स, जैसे की कुकीज के माध्यम से आपकी जानकारी एकत्र करते हैं ताकि आपको बेहतर अनुभव प्रदान कर सकें, वेबसाइट के ट्रैफिक का विश्लेषण कर सकें, कॉन्टेंट व्यक्तिगत तरीके से पेश कर सकें और हमारे पार्टनर्स, जैसे की Google, और सोशल मीडिया साइट्स, जैसे की Facebook, के साथ लक्षित विज्ञापन पेश करने के लिए उपयोग कर सकें। साथ ही, अगर आप साइन-अप करते हैं, तो हम आपका ईमेल पता, फोन नंबर और अन्य विवरण पूरी तरह सुरक्षित तरीके से स्टोर करते हैं। आप कुकीज नीति पृष्ठ से अपनी कुकीज हटा सकते है और रजिस्टर्ड यूजर अपने प्रोफाइल पेज से अपना व्यक्तिगत डाटा हटा या एक्सपोर्ट कर सकते हैं। हमारी Cookies Policy, Privacy Policy और Terms & Conditions के बारे में पढ़ें और अपनी सहमति देने के लिए Agree पर क्लिक करें।

Agree