'मुर्दों का टीला' नाम से कभी भारत में थी दुनिया की मॉर्डन सिटी, ऐसे खत्म हुआ 4 हजार साल पुराना शहर
फिरकी टीम, नई दिल्ली
Published by:
गौरव शुक्ला
Updated Fri, 21 Dec 2018 04:08 PM IST
सिंधु घाटी की सभ्यता और मोहनजोदड़ो के विषय में तो आपने बचपन में सुना और पढ़ा भी होगा।लेकिन प्रत्येक चीज से जुड़ी कुछ ऐसी बातें होती हैं जो पढ़ाई के दौरान हम किताबों में नहीं पढ़ पाते।सिंधु सभ्यता भारत की ही नहीं बल्कि विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता है। यह सभ्यता कम से कम 4000 वर्ष पुरानी है। यह हड़प्पा सभ्यता और ‘सिंधु-सरस्वती सभ्यता’ के नाम से भी जानी जाती है।
इस सभ्यता का विकास सिंधु और सरस्वती नदी के किनारे हुआ और मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़ी तथा हड़प्पा इसके प्रमुख केन्द्र थे। माना जाता है कई समय तक इस सभ्यता के बारे में पता नहीं लग पाया था। ब्रिटिश काल में हुई खुदाइयों के आधार पर इसके अवशेष मिले। तो पढ़िए सिंधु सभय्ता के प्रमुख केंद्रों में से एक मोहनजोदड़ो से जुड़े कुछ अनजान रहस्य।
ऐसा माना जाता है कि 2600 ईसा पूर्व अर्थात आज से 4616 वर्ष पूर्व इस नगर की स्थापना हुई थी। कुछ इतिहासकारों के अनुसार इस सभ्यता का काल निर्धारण लगभग 2700 ई. पू. से 1900 ई. पू. तक का माना जाता है। हड़प्पा के इस नगर मोहनजोदड़ों को ‘सिंध का बांग’ कहा जाता है।
मोहनजोदड़ो से सूती कपड़े के उपयोग के प्रमाण मिले हैं इसका मतलब वे कपास की खेती के बारे में जानते थे। इतिहाकारों के अनुसार सबसे पहली बार कपास उपजाने का श्रेय हड़प्पावासियों को ही दिया जाता है। हड़प्पा सभ्यता के मोहजोदड़ो से कपड़ों के टुकड़े के अवशेष, चांदी के एक फूलदान के ढक्कन तथा कुछ अन्य तांबें की वस्तुएं मिले है। यहां के लोग शतरंज का खेल भी जानते थे और वे लोहे का उपयोग करते थे इसका मतलब यह की वे लोहे के बारे में भी जानते थे।
यहां से प्राप्त मुहरों को सर्वोत्तम कलाकृतियों का दर्जा प्राप्त है। हड़प्पा नगर की खोदाई से तांबे की मुहरें प्राप्त हुई हैं।मोहनजोदड़ो से प्राप्त पशुपति की मुहर पर हाथी, गैंडा, बाघ और बैल अंकित हैं। मोहनजोदड़ों से प्राप्त विशाल स्नानागार में जल के रिसाव को रोकने के लिए ईंटों के ऊपर जिप्सम के गारे के ऊपर चारकोल की परत चढ़ाई गई थी जिससे पता चलता है कि वे चारकोल के संबंध में भी जानते थे।
पृथ्वी की संरचना में हुए बदलाव, भूकंप और जलवायु परिर्वतन के चलते जहां सरस्वती भूमिगत हो गई वहीं सिंधु नदी ने अपना मार्ग बदल दिया।पहले सिंधु हिमालय से निकलकर कच्छ की खाड़ी में गिरती थी इसका रुख बदलकर दूसरा हो गया।
लगभग इसी काल में एक वैश्विक सूखा पड़ा जिसके कारण संसार की सभ्यताएं प्रभावित हुईं और इसका दक्षिण यूरोप से लेकर भारत तक पर असर हुआ। करीब 2200 ईसा पूर्व में मेसोपोटेमिया की सुमेरियाई सभ्यता पूरी तरह खत्म हो गई। जलवायु परिवर्तन ने करीब 4 हजार साल पहले सिन्धु घाटी या हड़प्पा सभ्यता का खात्मा करने में एक बड़ी भूमिका निभाई थी। यह दावा एक नए अध्ययन में किया गया है।
मोहनजोदड़ो को तो मौत का टीला कहा जाता है।यह सभ्यता जहां हैं आज उस हिस्से को पाकिस्तान कहा जाता है, महाभारतकाल में उसके उत्तरी हिस्से को गांधार की स्थली कहा जाता था।उस काल में सिन्धु और सरस्वती नदी के पास ही लोग रहते थे। यहीं सिन्धु घाटी की सभ्यता और मोहनजोदड़ो के शहर बसे थे, जो मध्यप्रदेश की नर्मदा घाटी तक फैले थे।
सिन्धु घाटी सभ्यता के मोहनजोदड़ो, हड़प्पा आदि स्थानों की प्राचीनता और उनके रहस्यों को आज भी सुलझाया नहीं जा सका है।एक नए अध्ययन में किया गया है इतिहासकारों द्वारा ये दावा किया गया है की लोगों के बीच हिंसा, संक्रामक रोगों और जलवायु परिवर्तन ने करीब 4 हजार साल पहले सिन्धु घाटी या हड़प्पा सभ्यता का खात्मा करने में एक बड़ी भूमिका निभाई थी।