जब भी कोई देश दूसरे देश को परमाणु युद्ध की धमकी देता है तो दूसरे देश और उसके पड़ोसी राज्य सभी सहम जाते हैं,क्योंकि परमाणु हमला कितना खतरनाक हो सकता है इसका अंजाम जापान को देखकर लगाया जा सकता है लेकिन क्या आपने कभी किसी ऐसी जगह के बारे में सुना है जहां 456 परमाणु बमों का परीक्षण किया गया है? ये जगह है कजाकिस्तान के 'द पॉलिगन' का इतिहास अपने आप में खौफनाक है। कजाकिस्तान के 'द पॉलिगन' का इतिहास अपने आप में खौफनाक है। 1949 से 1989 के बीच यहां लगभग हर साल 10 परमाणु बमों का परीक्षण किया गया और इसके नतीजे आज तक दिख रहे हैं। शीत युद्ध के दौरान पूर्व सोवियत रूस यानी यूएसएसआर ने परमाणु परीक्षण के लिए यहां दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र बनाया था। सोवियत रूस की सरकार ने यहां 456 परमाणु बमों का परीक्षण किया था।
केंद्रीय एशिया के कजाक स्टेपीज में स्थित 'द पॉलिगन' का आधिकारिक नाम है सेमीपलाटिंस्क टेस्ट साइट। ये जगह बेल्जियम जितनी या फिर अमेरिका के मैरीलैंड जितनी बड़ी है। यहां का प्रमुख शहर है कूअरशाटोफ, जिसका नाम रूसी भौतिकशास्त्री आईगोर कूअरशाटोफ के नाम पर दिया गया है। कूअरशाटोफ ने सोवियत रूस के परमाणु कार्यक्रम का नेतृत्व किया था। यहीं से सेमीपलाटिंस्क में किए जाने वाले परीक्षणों की निगरानी की जाती थी। परमाणु परीक्षणों के लिए इस जगह को चुना गया क्योंकि सर्बिया के मुकाबले ये इलाका मेक्सिको के करीब है। सोवियत रूस की खुफिया पुलिस के निदेशक और सोवियत परमाणु बम कार्यक्रम की लावरेंती बेरिया के अनुसार यहां लोग नहीं रहते थे। यहां की जमीन भी जरूरत से ज्यादा ही सख्त है। यही कारण है कि रूसी जार निकोलस I ने 1854 में सरकार के खिलाफ बोलने वाले लेखक फ्योदोर दोस्तोवस्की को निर्वासित कर यहां छोड़ दिया था।
जब परमाणु परीक्षण के लिए 1947 में इस जगह को चुना गया तब यहां 70,000 लोग रहते थे। इनमें कारिप्बेक कुयूकोव भी हैं जो सोवियत रूस के परीक्षणों का नतीजा सह रहे हैं। उन्होंने बताया, 'जब मैं पैदा हुआ मेरे हाथ नहीं थे। मेरी मां सदमे में थी, उनके लिए ये मुश्किल समय था। वो तीन दिन तक मुझे देख तक नहीं पाईं।' कुयूकोव खानाबदोश गड़रियों के परिवार में 1968 में पैदा हुए थे, जिन्हें एक परमाणु बम के परीक्षण से ठीक पहले इलाके से बाहर निकाला गया था। वो कहते हैं, 'डॉक्टर में मेरी मां को बताया था कि अगर वो मुझे नहीं चाहतीं तो वो मुझे ऐसा इंजेक्शन दे सकते हैं जिससे मेरी और उनकी तकलीफ खत्म हो जाएगी। वो कहते हैं कि उनके पिता ने इससे इंकार कर दिया था। कुयूकोव बताते हैं, 'उन्होंने मुझे जिंदगी का तोहफा दिया, मुझे लगता है कि परमाणु परीक्षण का दर्द झेलने वाला दुनिया का आखिरी इंसान बनना मेरा मिशन है।'
कुयूकोव लगभग 500 में से एक परीक्षण की बात करते हैं जो करीब चार दशक पहले सोवियत संघ ने गुप्त तरीके से किया था। शीत युद्ध के दौरान सोवियत रूस के असल परमाणु कार्यक्रम की किसी को जानकारी नहीं है, क्योंकि इस संबंध में कागजात कभी सार्वजनिक नहीं किए गए। कुयूकोव बताते हैं, 'उस समय मेरी मां जवान थीं। वो परीक्षण देखने के लिए पहाड़ के ऊपर चढ़ गई थीं। वो खूबसूरत नजारा था, एक तेज रोशनी हुई फिर मशरूम की तरह कुछ जमीन से ऊपर उठा और फिर काला अंधेरा छा गया।' सोवियत रूस की सेना ने कई सालों तक 'द पॉलिगन' में रहने वालों के स्वास्थ्य का ध्यान रखा। यहां रहने वाले कुछ लोगों ने बताया कि नई बीमारियां आने लगीं- कैंसर महामारी की तरह फैलने लगा, कुछ लोगों ने तो अपने परिवार और बच्चों समेत आत्महत्या कर ली। 1980 के आखिर में नेवादा-सेमीपलाटिंस्क परमाणुरोधी अभियान शुरू हुआ और परमाणु परीक्षणों पर रोक लगाने की मांग की जाने लगी। कवि ओल्जास सुलेमानोव और कारिप्बेक कुयूकोव इस अभियान से जुड़े दो अहम एक्टिविस्ट थे। इस अभियान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली। नतीजतन सोवियत संघ को 1990 में 18 में से 11 परीक्षणों को रद्द करना पड़ा।
29 अगस्त, 1991 में कजाकिस्तान के राष्ट्रपति नूरसुल्तान नजारबायेव ने सेमीपलाटिंस्क को आधिकारिक तौर पर बंद कर दिया। कुछ महीनों बाद कजाकिस्तान ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की और दुनिया के सबसे बड़े परमाणु परीक्षण की जगह की आलोचना की और इस इलाके को अपना लिया। सरकार के निवेदन को मानते हुए संयुक्त राष्ट्र ने अगस्त 29 को इंटरनेशनल डे अगेंस्ट न्यूक्लियर टेस्टिंग के रूप में मनाने का फैसला किया। संयुक्त राष्ट्र में कजाकिस्तान के स्थायी राजदूत कैरात अब्द्रखमानोफ के अनुसार, जब सोवियत सेना यहां से गई तब यहां 110 मिसाइलें और 1200 परमाणु बम थे। सोवियत सेना के जाने का सीधा असर सेमीपलाटिंस्क के सामाजिक आर्थिक व्यवस्था पर पड़ा। इस इलाके की सुरक्षा की जिम्मेदारी कजाकिस्तान के 500 सैनिकों को दे दी गई। इलाके में रहने वाले यहां छोड़ी गई इमारतों और अन्य सामान के टुकड़ों को तोड़ कर बेचने लगे और परमाणु विकिरण से प्रभावित हुए। यहां तक कि 1993 में 'द पॉलिगन' के निदेशक को सैन्य सामान चोरी कर बेचने के आरोप में बर्खास्त कर दिए गए थे।
परमाणु परीक्षण तो बंद हो गए लेकिन यहां स्वास्थ्य समस्याएं खत्म नहीं हुईं। इंस्टीट्यूट ऑफ रेडियोएक्टिव मेडिसिन एंड इकोलॉजी ऑफ कजाकिस्तान के एक अनुमान के अनुसार, 1949 से 1962 के बीच यहां रहने वाले पांच लाख से 10 लाख लोग विकिरण के संपर्क में आए। विकिरण पर काम कर रहे शोधकर्ता तलगत मुल्दागलिव ने बताया, 'पॉलिगन में जो हुआ, वो चेर्नोबिल या हिरोशिमा से अधिक खतरनाक था। जहां हम हिरोशिमा में एक विस्फोट की बात करते हैं, यहां पर लोग लगातार परमाणु विस्फोटों से रूबरू होते रहे।' मुल्दागलिव कहते हैं सेमीपलाटिंस्क में सैंकड़ों परमाणु विस्फोट किए गए थे।
दुनिया में 'द पॉलिगन' ही एकमात्र जगह नहीं जहां परमाणु परीक्षण किए गए हों। शीत युद्द के दौरान सोवियत रूस समेत अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन भी दूसरी जगहों पर अपनी परमाणु तकनीक को मजबूत करने के लिए परीक्षण कर रहे थे। लास वेगास से 105 किलोमीटर दूर नेवादा उत्तर अमेरिका के लिए ऐसी ही जगह थी। 3500 वर्ग किलोमीटर के इस क्षेत्र में अमेरिकी सेना ने 1951 से 1992 के बीच 928 परमाणु परीक्षण किए। इनमें से 800 परीक्षण जमीन के नीचे किए गए थे। लेकिन इन परीक्षणों के बाद उठने वाला धुंआ 150 किलोमीटर दूर तक देखा गया और कई बार मीडिया के आकर्षण का केंद्र बना।
सेमीपलाटिंस्क और नेवादा के अलावा शीत युद्ध के दौरान रूस के न्यू जेम्ला और पेसिफिक द्वीपों पर सबसे अधिक परीक्षण किए गए। रूस के आर्कटिक इलाके में 1955 से 1990 के बीच 224 परीक्षण किए गए। 20 अक्तूबर, 1961 में यहां जार बम का विस्फोट किया गया जो 57 मेगाटन से अधिक शक्तिशाली था। ये मानव इतिहास का सबसे जबरदस्त विस्फोट माना जाता है। फ्रांसीसी सेना ने पोलिनेशिया को अपने परमाणु परीक्षण केंद्र के तौर पर इस्तेमाल किया है। फन्गातोफा और मुरुरोआ में 12 और 176 परमाणु बम विस्फोट किए गए। अमेरिकी सेना की बात करें तो मार्शल द्वीपों से नजदीक सेना ने 40 विस्फोट किए थे। ऐसे एक विस्फोट में एल्यूजलेब नाम का एक छोटा द्वीप पूरी तरह नष्ट हो गया था।