विस्तार
असीरगढ़ किले से जुड़ी कई रहस्यमयी और रोचक बाते सुनने को मिलती हैं, जिनमें सबसे महत्वपुर्ण और विख्यात है अश्वत्थामा की कहानी।
दुनिया का सबसे बड़ा रहस्य अपने में समेटे असीरगढ़ किला बुरहानपुर से लगभग 20 किमी की दूरी पर उत्तर दिशा में सतपुड़ा पहाडियों के शिखर पर समुद्र सतह से 750 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। बुरहानपुर खंडवा से लगभग 80 किमी दूर है।
अश्वत्थामा का वजूद आज भी है
महाभारत के बारे में जानने वाले लोग अश्वत्थामा के बारे में तो जानते ही होंगे। कहा जाता है कि महाभारत के कई प्रमुख चरित्रों में से एक अश्वत्थामा का वजूद आज भी है। अगर यह पढ़कर आप हैरान हो रहे हैं, तो हम आपको बता दें कि ये सच है।
पांच हजार वर्षों से अश्वत्थामा भटक रहे हैं
पिछले लगभग पांच हजार वर्षों से अश्वत्थामा भटक रहे हैं। ऐसा माना जाता है की बुरहानपुर, मध्य प्रदेश स्तिथ असीरगढ़ किले की शिवमंदिर में प्रतिदिन सबसे पहले पूजा करने आते है। शिवलिंग पर प्रतिदिन सुबह ताजा फूल एवं गुलाल चढ़ा मिलना अपने आप में एक रहस्य है। हम यहां आपको महाभारत काल के अश्वत्थामा से जुड़ी वो खास बातें बताने जा रहे हैं, जिनके बारे में आपको शायद ही मालूम होगा।
गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे अश्वत्थामा
अश्वत्थामा महाभारतकाल अर्थात द्वापरयुग में जन्मे थे। उनकी गिनती उस युग के श्रेष्ठ योद्धाओं में होती थी। वे गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र व कुरु वंश के राजगुरु कृपाचार्य के भानजे थे। द्रोणाचार्य ने ही कौरवों और पांडवों को शस्त्र विद्या सिखाई थी।
कूटनीति का सहारा लिया
महाभारत के युद्ध में पिता-पुत्र की जोड़ी ने महाभारत के युद्ध के दौरान पांडवों की सेना को तहस-नहस कर दिया था। पांडव सेना को हतोत्साहित देख श्रीकृष्ण ने द्रोणाचार्य का वध करने के लिए युधिष्ठिर से कूटनीति का सहारा लेने को कहा। कूटनीति से पांडवो ने द्रोणाचार्य का वध कर दिया।
श्रीकृष्ण ने दिया श्राप
पिता की मृत्यु ने अश्वत्थामा को विचलित कर दिया। महाभारत युद्ध के पश्चात जब अश्वत्थामा ने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए पांडव पुत्रों का वध कर दिया तथा पांडव वंश के समूल नाश के लिए उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया, तब भगवान श्री कृष्ण ने परीक्षित की रक्षा कर दंड स्वरुप अश्वत्थामा के माथे पर लगी मणि निकालकर उन्हें तेजहीन कर दिया और युगों-युगों तक भटकते रहने का श्राप दे दिया।
कहते हैं पागल हो जाता है देखने वाला
कहा जाता है कि असीरगढ़ के अलावा मध्यप्रदेश के ही जबलपुर शहर के गौरीघाट (नर्मदा नदी) के किनारे भी अश्वत्थामा भटकते रहते हैं। स्थानीय निवासियों के अनुसार कभी-कभी वे अपने मस्तक के घाव से बहते खून को रोकने के लिए हल्दी और तेल की मांग भी करते हैं। कई लोगों ने इस बारे में अपनी आपबीती भी सुनाई। गांव के कई बुजुर्गों की मानें तो जो एक बार अश्वत्थामा को देख लेता है, उसका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है।
शिव मंदिर में करते है पूजा-अर्चना
किले में स्थित तालाब में स्नान करके अश्वत्थामा शिव मंदिर में पूजा-अर्चना करने जाते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि वे उतावली नदी में स्नान करके पूजा के लिए यहां आते हैं। आश्चर्य कि बात यह है कि पहाड़ की चोटी पर बने किले में स्थित यह तालाब बुरहानपुर की तपती गरमी में भी कभी सूखता नहीं। तालाब के थोड़ा आगे गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर है। मंदिर चारो तरफ से खाइयों से घिरा है। कहा जैतै है की इन्हीं खाइयों में से किसी एक में गुप्त रास्ता बना हुआ है, जो खांडव वन (खंडवा जिला) से होता हुआ सीधे इस मंदिर में निकलता है।
इसी रास्ते से अश्वत्थामा आते हैं मंदिर
इसी रास्ते से होते हुए अश्वत्थामा मंदिर के अंदर आते हैं। भले ही इस मंदिर में कोई रोशनी और आधुनिक व्यवस्था न हो, यहां परिंदा भी पर न मारता हो, लेकिन पूजा लगातार जारी है। शिवलिंग पर प्रतिदिन ताजा फूल एवं गुलाल चढ़ा रहता है।
मानो तो यह सच है न मानो तो झूठ
बुरहानपुर के इतिहासविद डॉ. मोहम्मद शफी (प्रोफेसर, सेवा सदन महाविद्यालय, बुरहानपुर) ने बताया कि बुरहानपुर का इतिहास महाभारतकाल से जुड़ा हुआ है। पहले यह जगह खांडव वन से जुड़ी हुई थी। किले का नाम असीरगढ़ यहां के एक प्रमुख चरवाहे आसा अहीर के नाम पर रखा गया था। किले को यह स्वरूप 1380 ई. में फारूखी वंश के बादशाहों ने दिया था।
जहां तक अश्वत्थामा की बात है, तो शफी साहब फरमाते हैं कि मैंने बचपन से ही इन कहानियों को सुना है। मानो तो यह सच है न मानो तो झूठ।
अष्ट चिरंजीवियों में से एक हैं अश्वत्थामा
महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक अश्वत्थामा थे। ये कौरवों व पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे। हनुमानजी आदि आठ अमर लोगों में अश्वत्थामा का नाम भी आता है।
अर्थात अश्वत्थामा, राजा बलि, व्यासजी, हनुमानजी, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम व ऋषि मार्कण्डेय- ये आठों अमर हैं।