पूरी पाकिस्तानी सेना पर भारी पडा था ये भारतीय जाबांज जासूस
Updated Sat, 30 Jan 2016 04:27 PM IST
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विस्तार
पाकिस्तान में जिंदगी की जंग हारने वाला सरबजीत हमेशा भारतीय मीडिया में सुर्खियों में रहा और अब तो बॉलीवुड उन पर फिल्म भी बना रहा है। सरबजीत को लेकर ये विवाद होता रहा है कि वो भारत के जासूस थे या नहीं, लेकिन ये मामला जासूसी की दुनिया की तरफ ध्यान जरूर खींचता है।
ये कहानी एक भारतीय जासूस की सच्ची कहानी है, जो पाकिस्तान जाकर, पाकिस्तानी सेना में भर्ती होकर मेजर की पोस्ट तक पहुंच गया था। लेकिन जब वो पकड़ा गया तो भारत सरकार ने किसी तरह की कोई मदद नहीं की, यहां तक कि उसकी मौत के बाद उसकी लाश भी देश नहीं लाई गई। यह कहानी है भारतीय जाबांज जासूस ‘रविन्द्र कौशिक’ उर्फ ‘ब्लैक टाइगर’ की।
पाकिस्तान के हर कदम पर भारत भारी पड़ता था क्योंकि उसकी सभी योजनाओं की जानकारी कौशिक की ओर से भारतीय अधिकारियों को दे दी जाती थी।
कौन था ब्लैक टाइगर
राजस्थान के श्री गंगानगर के रहने वाले रविन्द्र कौशिक का जन्म 11 अप्रैल 1952 को हुआ। उसका बचपन गंगानगर में ही बीता। बचपन से ही उसे थियेटर का शौक था इसलिए बड़ा होकर वो एक थियेटर कलाकार बन गया। जब एक बार वो लखनऊ में एक प्रोग्राम कर रहा था तब भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के अधिकारियों की नजर उस पर पड़ी। उसमे उन्हें एक जासूस बनने के सारे गुण उनमें नजर आए। रॉ के अधिकारियों ने उससे मिलकर उसके सामने जासूस बनकर पाकिस्तान जाने का प्रस्ताव रखा जिसे कि उसने स्वीकार कर लिया।
रॉ ने उसकी ट्रेनिंग शुरू की। पाकिस्तान जाने से पहले दिल्ली में करीब 2 साल तक उसकी ट्रेनिंग चली। पाकिस्तान में किसी भी परेशानी से बचने के लिए उसका खतना किया गया। उसे उर्दू, इस्लाम और पाकिस्तान के बारे में जानकारी दी गई। ट्रेनिंग समाप्त होने के बाद मात्र 23 साल की उम्र में रविन्द्र को पाकिस्तान भेज दिया गया। पाकिस्तान में उसका नाम बदलकर नवी अहमद शाकिर कर दिया गया। चूंकि रविन्द्र गंगानगर का रहने वाला था जहां पंजाबी बोली जाती है और पाकिस्तान के अधिकतर इलाकों में भी पंजाबी बोली जाती है इसलिए उसे पाकिस्तान में सेट होने में ज्यादा दिक्कत नहीं आई।
रविन्द्र नें पाकिस्तान की नागरिकता लेकर पढाई के लिए यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया जहां से उसने कानून में ग्रेजुएशन किया। पढाई खत्म होने के बाद वो पाकिस्तानी सेना में भर्ती हो गया तथा प्रमोशन लेते हुए मेजर की रैंक तक पहुँच गया। इसी बीच उसने वहां पर एक आर्मी अफसर की लड़की अमानत से शादी कर ली तथा एक बेटी का पिता बन गया।
ऐसे खुला राज
रविन्द्र कौशिक ने 1979 से लेकर 1983 तक सेना और सरकार से जुडी अहम जानकारियां भारत पहुंचाई। रॉ ने उसके काम से प्रभावित होकर उसे ब्लैक टाइगर के खिताब से नवाजा। पर 1983 का साल ब्लैक टाइगर के लिए मनहूस साबित हुआ। 1983 में रविंद्र कौशिक से मिलने के लिए रॉ ने एक और एजेंट पाकिस्तान भेजा। लेकिन वह पाकिस्तान खुफिया एजेंसी के हत्थे चढ़ गया। लंबी यातना और पूछताछ के बाद उसने रविंद्र के बारे में सब कुछ बता दिया।
रविंद्र ने भागने का प्रयास किया, लेकिन भारत सरकार ने उसकी वापसी में दिलचस्पी नहीं ली। रविंद्र को गिरफ्तार कर सियालकोट की जेल में डाल दिया गया। पूछताछ में लालच और यातना देने के बाद भी उसने भारत की कोई भी जानकारी देने से मना कर दिया। 1985 में उसे मौत की सजा सुनाई गई, जिसे बाद में उम्रकैद में बदला गया। मियांवाली जेल में 16 साल कैद काटने के बाद 2001 में उसकी मौत हो गई। उसकी मौत के बाद भारत सरकार ने उसका शव भी लेने से मना कर दिया।
भारत सरकार ने रविंद्र से जुड़े सभी रिकॉर्ड नष्ट कर दिए और रॉ को चेतावनी दी कि इस मामले में चुप रहे। उसके पिता इंडियन एयरफोर्स में अफसर थे। रिटायर होने के बाद वे टेक्सटाइल मिल में काम करने लगे। रविंद्र ने जेल से कई चिट्ठियां अपने परिवार को लिखीं। वह अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों की कहानी बताता था। एक खत में उसने अपने पिता से पूछा था कि क्या भारत जैसे बड़े मुल्क में कुर्बानी देने वालों को यही मिलता है?
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