विस्तार
भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा 1985 में प्रकाशित शरद जोशी की किताब यथासम्भव में उनका लेख बिल्लियों का अर्थशास्त्र पढ़ने के बाद आपको मनुष्यों के अर्थशास्त्र के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।
रोटियों का बंटवारा करने के लिए बिल्लियों को बंदर की मदद लेनी पड़ी, यह अत्यंत खेद का विषय है। चूहे मर जाने के बाद बिल्ली का घर से बना कॉन्ट्रेक्ट, जो कभी दूध के प्यालों से स्थापित किया गया था, डंडा मारकर समाप्त कर दिया जाए, बड़ी गंभीर समस्या है। बिल्लियां आखिर कब तक मूर्ख बनती रहेगीं? उन्हें चाहिए कि वो अपना एक अर्थशास्त्र तैयार करें, जैसा कि मनुष्यों ने किया है। इस शास्त्र के मुताबिक काम करने से न चूहा खाना अनैतिकता होगी और दूध पीना चोरी। अब वह समय आ गया है जब हर काम नियम से हो। पिछले कुछ वर्षों में बिल्ली के उपयोग में आने वाली वस्तुओं की तेजी से कमी आई है। दूध पतला हो गया है और घी नकली बनने लगा है। मक्खन सीधा मशीन से निकल टीन के डिब्बों में पैक हो जाता है। चूहे खत्म करना व्यक्तिगत दायित्व समझने लगा है और चिड़ियों की रक्षा के भी साधन खोजे गए हैं। इधर कुत्तों को घरों के अंदर स्थान मिल गया है। बिल्ली जाति के लिए ऐसी कठिनाई की स्थिति अभी तक नहीं आई थी। संक्रांति काल शायद इसी को कहते हैं। इधर तेजी से मानव-मूल्यों का ह्रास हुआ है। जिसका प्रत्यक्ष असर स्वास्थ्य पर पड़ा है। बिल्लियों को चाहिए कि वे सामग्री, साधन, शक्ति और आवश्यकता का ठीक-ठीक आंकलन करें और अपने लक्ष्य के अनुसार क्रमबद्धता निश्चित करे तभी समस्या सुलझेगी। बिल्लियों के लिए आज अर्थशास्त्र की आवश्यकता स्पष्ट ही है और समयोचित जानकर ही इसे प्रकाशित किया जा रहा है।
मनुष्यों का अर्थशास्त्र ये दावा करता है कि उसका लक्ष्य समस्त विश्व का कल्याण है। बिल्लियां विश्व की प्राणी हैं पर उनके कल्याण की कोई गुंजाइश मनुष्य के अर्थशास्त्र में नहीं है। अत: बिल्लियों के हितों को दृष्टिगत रखते हुए इस शास्त्र की रचना इस उदारता से की जा रही है कि साथ ही चूहा-वर्ग के कल्याण की समस्या भी इसमें सुलझाई जा सके। वास्तव में बिल्ली की तृप्ति और चूहे की मृत्यु का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। इसे कार्य-कारण-सम्बन्ध कह सकते हैं। चूंकि एक विषय में विचार करते समय दूसरे का प्रश्न भी आ ही जाता है। अत: उसके अनुसार यह अर्थखशास्त्र एक प्रकार से बिल्ली-चूहा अर्थशास्त्र है। जैसे कि मनुष्यों का लिखा अर्थशास्त्र उच्च वर्गों के हितों पर ही विचार करने के बावजूद भी दोनों वर्गों का अर्थशास्त्र माना जाता है।
‘अर्थ’ शब्द के अनेक अर्थ होते हैं पर इस पुस्तक में यह शब्द उसी अर्थ में आएगा जिस अर्थ में स्वार्थ में आता है। अर्थात जहां बिल्लयों का स्वार्थ हो। इस पुस्तक के प्रारम्भ में बिल्लियों के अर्थशास्त्र के परिभाषा देना उचित होगा। यह सब औपचारिक है पर शास्त्र के नियमों की मजबूरी है कि एक सुंदर सी परिभाषा गढ़ी जाय। वह होगी कि ‘ बिल्लियों का अर्थशास्त्र, एक शास्त्र है जिसमें एक परमार्थी प्राणी के नाते संसार में बिल्ली के आवश्यक दायित्वों एवं कार्यकलापों का क्रमबद्ध विवेचन किया जाए।’
प्राणी मात्र अपनी इच्छाओं की तृप्ति मेें सुख का अनुभव करता है। बिल्ली भी इच्छा की तृप्ति से सुखी होती है। परंतु उसके साधन परिमित हैं। क्योंकि बिल्ली में सामाजिकता की भावना होती है। बिल्ली यह जानते हुए भी कि दूध गाय भैसों से प्राप्त होता है, कभी गाय के निकट नहीं जाती, जैसे एक वैश्य यह जानते हुए भी कि गेंहू खेत में उगता है, कभी खेत जोतने नहीं जाता है। वह किसान के माध्यम से गेंहू प्राप्त करता है। ठीक उसी प्रकार बिल्ली मनुष्य के माध्यम से दूध प्राप्त करती है। कुछ स्वार्थियों को अपवाद के रूप में छोड़ दिया जाए, परन्तु आम आदमी तो स्वंय दूध नहीं पीता बल्कि बच्चे को देना पसंद करता है, अर्थात वह पिलाकर तृप्त होता है। बिल्ली मनुष्य द्वारा अर्जित पीकर मनुष्य को तृप्त करती है और स्वंय भी होती है। जैसे श्रमिक उत्पादन करने पर तथा मालिक उत्पादन पाकर तृप्त होता है। यही बिल्ली की सामाजिकता है। यही उसकी तृप्ति है। बिल्ली की सामाजिकता दूध पीने के बावजूद उसी प्रकार अक्षुण है जैसे किसी सेठ साहब की। यह अर्थशास्त्र का सिद्धांत है।
चूहों के लिए सबसे बढ़कर चिंता का विषय कोई नहीं हो सकता कि उनकी संख्या तेजी से बढ़ रही है। इसका असर स्वयं उन पर पड़ेगा क्योंकि बढ़ती हुई संख्या के लिए भोजन जुटाना कठिन होगा। हर चूहा परिणाम स्वरूप दुबला रहेगा और उससे नस्ल बरबाद होगी। अत: चूहों का हित इसी में है कि उनके यहां पैदाइशें कम हो अथवा मृत्यु संख्या, जन्म संख्या से अधिक रहे। इस समस्या को सुलझाने के लिए उन्हें बिल्ली का सहारा लेना चाहिए। चूहों को ये जानकर दुख होगा कि बिल्ली मूल रुप से दूध पीने वाला प्राणी है। उसे नॉन वेजेटिरियन कहना कठिन है परन्तु असाध्य नहीं। दूसरी बात कि बिल्लियों की संख्या भी कम है। बिल्लियों की नस्ल को खत्म होने से रोकना भी चूहों का काम है। सौभाग्यशाली हैं वे चूहे जिनके उधर बिल्ली है जो उनकी बढ़ती हुई जनसंख्या को संतुलित रखती है। आज विश्व में प्रति हजार चूहे और एक बिल्ली का अनुपात आता है। जबकि वास्तव में आवश्यकता है कि प्रति सौ चूहे एक बिल्ली रहे। एक बिल्ली सामान्य तौर पर एक चूहा प्रतिदिन कम कर सकती है और उसके विपरित चूहों का जन्म तेजी से होता है। अर्थशास्त्र की एक गंभीर समस्या है जिस पर हर चूहे का विचार करना चाहिए।
मूल्य का निर्धारण समाज की वस्तु विशेष की आवश्यकता तथा उसकी प्राप्ति पर निर्भर करता है। जो वस्तु जितनी कम होगी, उतनी ही मूल्यवान होगी। जैसे यदि शीशीयां अधिक हैं और ढक्कन कम हैं तो ढक्कनों का मूल्य शीशियों की अपेक्षा अधिक भी हो सकता है। समझदार आदमी कम होते हैं, अत: समझदार का बड़ा मूल्य होता है। ज्ञान-प्राप्ति, अच्छा स्वास्थ्य बनाने अथवा कविता लिखने के मूल में अर्थशास्त्र का यही सिद्धांत काम कर रहा है कि मनुष्य ज्ञानवान, स्वस्थ्य अथवा कवि बनकर अपना मूल्य बढ़ा सकता है। पर जब शिक्षा बढ़ जाने से सब समझदार हो जाएंगे तो समझदार की इज्जत नहीं रहेगी। तब मूर्खों का मूल्य बढ़ जाएगा। जैसे कवि अधिक हो जाने से कविता का पारिश्रामिक कम हो जाता है। संसार में जितने मनुष्य हैं, उनकी आवश्यकता भर दूध नहीं है। इससे दूध का मूल्य बढ़ जाता है। परंतु सामान्य आदमी खरीद सके, इस हेतु दूध में पानी मिलाया जाता है। मात्रा बढ़ जाने से मूल्य कम हो जाता है। बिल्ली अपने निजी प्रयत्नों से मूल्य की इस गिरावट को रोकती है। यदि शेर भर दूध में से आधा बिल्ली ने पी लिया तो शेष आधा दूध का मूल्य, शेर भर दूध के मूल्य के बराबर हो गया। मूल्य बढ़ जाने से बाजार में स्थायित्व आता है। मनुष्य अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए अधिक प्रयत्न करता है और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाता है, जिसका अर्थ है- जीवन-स्तर उठाना। मनुष्य का जीवन स्तर उठाने में बिल्ली प्रमुख भूमिका अदा करती है। इसी कारण उठे हुए जीवन स्तर के व्यक्ति प्राय बिल्ली पालते देखे गए हैं। वो स्वयं अपने हाथों बिल्ली को दूध पिलाते हैं। यह सिद्ध है कि बिल्ली पालने की प्रथा जितनी बढ़ेगी, मनुष्य का जीवन-स्तर उतना उठेगा।
मनुष्यों की संख्या भी चूहों के समान बढ़ रही है और आवश्यकता अनुसार इतना अन्न धरती उपजा नहीं पा रही है। मनुष्य-समाज कि सहयोगिनी के नाते बिल्ली कभी सिके भुट्टे भी नहीं खाती। न केवल यह, बल्कि अन्य का नाश करने वाली चिड़ियों तथा मुर्गियों को भी समाप्त कर देती है। यूं चूहों को समाप्त करने में भी उसकी मूल भावना यही रहती है। इस प्रकार अन्न की बचत होती है। मनुष्य को जिवित रखना बिल्लियों के हित में है। वह घर बनाने वाला प्राणी है जहां चूहे पलते हैं।
बिल्लियों के अर्थशास्त्र का उद्देश्य इस प्रकार से सच्चे अर्थों में विश्व का कल्याण है जहां सब सुखी रहें।
मनुष्यों का अर्थशास्त्र प्रकाशित होने से जिस प्रकार अनेक प्रकार के निजी लाभ, आक्रमण, शोषण और विनाश को शोषण का सहारा मिल गया है उसी प्रकार बिल्ली के अर्थशास्त्र के प्रकाशन से भी अब बिल्लियों के भी कार्यकलाप सिद्धांतत: उचित है। जैसे-
1. एक चूहे को मरता देख समस्त चूहा वर्ग को प्रसन्नता होनी चाहिए कि उनकी बढ़ती हुई संख्या की समस्या हल हो रही है। इसके लिए उन्हें बिल्लियों का आभार मानना चाहिए।
2. मनुष्यों द्वारा अर्जित दूध यदि बिल्ली कम करे तो इससे दुग्ध उत्पादकों को लाभ होगा क्योंकि भाव नहीं गिरेगा और सामान्य जीवन-स्तर ऊपर उठेगा।
3. यदि बिल्ली पेड़ पर बैठी हुई शांति से चिड़िया पकड़े तो मनुष्य को तालियां बजाना चाहिए क्योंकि उसके अन्न की सुरक्षा हो रही है।
म्याँऊ!