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तस्करी करने वाले सभी की तस्करी करते हैं। लड़के-लड़कियां-जानवर... सबकी। अगर कुछ घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो लड़कों की तस्करी अमूमन उन्हें बंधुआ मजदूर बनाने के लिए की जाती है या फिर किडनी निकालने के लिए। जानवरों की तस्करी उनकी चमड़ी या सींग या दांत के लिए होती है। मतलब इनमें से जो कीमती है वो पहले निकाला जाता है। लड़कियों की तस्करी जब भी हो, उनकी किडनी निकालने के लिए नहीं होती। अगर किडनी निकाली भी गई तो यह काम सेकेंडरी होता है.. प्राइमरी काम हमेशा कुछ और होता है। लड़कियों में सबसे अच्छा क्या निकाला जा सकता है? उनमें ऐसा क्या है जिसके लिए उन्हें कैद किया जाना चाहिए? किडनी.. आंखें.. मजदूरी.. नहीं! उनकी योनि। उनके शरीर में मौजूद वह हिस्सा जो उन्हें दूसरी जाति से अलग कर एक अनोखी क्षमता देता है और साथ ही उन्हें सबसे कमज़ोर बनाता है।
लड़कियों की तस्करी होती है क्योंकि दुनिया के मंगल ग्रह पर पहुंच जाने के बावजूद हम में से कई लोगों की सोच लड़कियों की ब्रा से भी बाहर नहीं निकल पायी है। मंगल ग्रह पर सिर्फ़ अंतरिक्ष यान पहुंचे हैं, हम अब भी वहीं खड़े हैं जहां उस अंतरिक्ष यान के बनने से पहले खड़े थे।
एक लड़की है, पूर्वोत्तर दिल्ली के 'खजूरी खास' में रहती है। अभी 22 साल की है। अगर आप को बस इतना बताया जाए तो लगेगा कि अभी ग्रैजुएशन पूरा हुआ होगा। आगे पोस्ट ग्रैजुएशन या जॉब कर रही होगी। अभी तो उसकी शादी में भी 3-4 साल आराम से लगेंगे। पर ऐसा नहीं है.. उसकी ज़िंदगी बदल चुकी है। उसकी शादी भी हुई, उसने दो बच्चे भी जने और वो विधवा भी हो गई। वो लड़की वापस अपने घर आई है, 10 साल बाद।
वो 12 साल की थी जब उसे अगवा किया गया था। ये घटना देश के राजधानी की है। उसकी किडनैपिंग का केस अब भी दर्ज है, कार्यवायी कितनी हुई पता नहीं.. पर उसका पता नहीं लगाया जा सका और उसे 10 साल बाद खुद ही आना पड़ा। उसे अगवा किया था एक गिरोह ने जो नाबालिग लड़कियों की तस्करी करता है। ऐसे गिरोह ज़िंदा हैं इस देश में और फल-फूल रहे हैं ये अपने आप में ही कितना डराने वाला है। यहां बेटी पैदा करना और बेटी होना अपने आप में एक बड़ा दर्द है। लड़की ने बताया कि जहां उसे रखा गया वहां वो अकेली नहीं थी, कई सारी नाबालिग लड़कियां थीं। सवाल ये भी है कि अगर उन्हें लड़कियों की योनि से ही मतलब है तो नाबालिग लड़कियां ही क्यों? वो इसलिए क्योंकि वो वर्जिन होती हैं.. उनकी उम्र कच्ची होती है.. उन्हें दर्द ज्यादा होता है और दर्द में ही तो मज़ा है। ऐसे घटिया जवाब आपको ऐसे दरिंदों से सुनने को मिलते आए हैं। आनंद भी पुरुष के लिए हिस्से में आना चाहिए औरतों के हिस्से में तो पीड़ा है ही।
उन सभी लड़कियों को खूब प्रताड़ित किया जाता था। मारा-पीटा जाता था। वहां से छूटने के बाद भी लड़की के शरीर पर निशान हैं। लड़कियां सेक्स करने के लिए तैयार न होतीं तो उन्हें चाकू से भी मारा जाता और कई बार सिगरेट से जलाया जाता। उस लड़की का नाम पता नहीं है.. बार-बार लड़की लिखना भी अजीब लगता है। पर मैं उसे पीड़िता नहीं लिखना चाहती। पीड़िता लिखकर हम हर बार एक लड़की को उसके साथ हुए ज़ुर्म से माप लेते हैं और उसकी अस्मिता कमतर हो जाती है। बहुत महान बनते हैं तो उसे 'निर्भया' या 'दामिनी' नाम दे देते हैं। उस लड़की के सम्मान में जो खुद लड़ी, उस लड़की के सम्मान में जिसे अपने ही समाज के लोगों से लड़ाई करनी पड़ी।
लड़की ने खुद बताया कि सन् 2006 में उसे एक गिरोह ने अगवा किया था, उसके 2 आदमी उसे दिल्ली से अंबाला ले गए और एक गांव में रखा। उसके बाद उसे ट्रेन से गुजरात ले जाया गया जहां उसे दूसरी नाबालिग लड़कियों के साथ एक कमरे में कैद कर के रखा गया। गुजरात में उसे कई लोगों को बेचा गया जो उसका रेप करते थे। इन सबके बाद उसे पंजाब के एक परिवार को बेचा गया जहां उसकी शादी करवा दी गई। आदमी कुछ ही महीनों में मर गया और इस लड़की ने दो बच्चों को जन्म दिया। आदमी के मर जाने के बाद परिवार ने इसे भी भगा दिया और बच्चे भी रख लिए। अब वो आज़ाद हो चुकी थी, इसलिए वापस अपने घर दिल्ली आ गई।
कहानी सुनने में छोटी लग रही है पर उसे वापस अपने घर आने में 10 साल लग गए। गुजरात और पंजाब के जिन घरों में ऐसी लड़कियों को कैद किया जाता है वहां आस-पास किसी को पता न हो ऐसा संभव नहीं लगता। गांवों में तो किसी के घर में एक नया लोटा भी आता है तो 4 पड़ोसियों को पता चल जाता है। मतलब किसी एक के ऐसा करने से गिरोह नहीं चल रहा है, पुलिस को इसकी भनक न हो, ऐसा कहना भी गलत होगा। "बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ" तो ठीक है मोदी जी.. पर इस बेटी को खुद को बचाने में 10 साल लग गए। कोई बचाने न आया। आपकी योजनाएं भी बैनर पर ही टंगी रहीं.. मामला गुजरात का ही है और 10 साल पुराना है। ऐसी कितनी ही बेटियां हैं जो नहीं बच पा रही हैं क्योंकि आपके बेटे इन्हें नहीं बचने दे रहे हैं। तो बेटियों को अपने ही समाज में बचने और बचाने की ज़रूरत क्यों पड़ रही है, इसपर भी विचार करें।
उस लड़की के 10 साल खराब हो गए। उन 10 सालों ने उसकी ज़िंदगी खराब कर दी। सिर्फ़ इसलिए क्योंकि उसके पास योनि थी जिसके ज़रिए तृष्णा की तृप्ति हो सकती थी। वो योनि का कारोबार था.. लड़की का नहीं। लड़की तो बस जिस्म बनकर उसका हिस्सा बनी हुई थी।
देश की राजधानी और दूसरे राज्यों में प्रशासन कितना सक्रीय है ये भी समझ आ रहा है। लड़कियां गुम होती हैं तो एफआईआर दर्ज हो जाता है, थोड़ी छानबीन होती है और फाइल बंद हो जाती है। पर इससे लड़की वापस नहीं आ जाती। हर लड़की वापस आती भी नहीं है.. कई बार वो हार जाती है, टूट जाती है। उसे बेबस किया जाता है क्योंकि वो लड़की है।
क्यों न घबराएं मां-बाप अपनी बच्चियों के देऱ से घर आने पर! क्यों न परेशान हों वो उन्हें स्कूल-कॉलेज भेजते हुए। उन्हें पता है कि कुछ मिनटों का खेल उसकी मासूमियत छीन लेगा। पर इसके लिए बेटियां कैद हो जाएं और मां-बाप भी उन्हें टोकरी भर-भर नसीहतें दें कि ज़माना खराब है, टाइम से आया करो। ऐसे उदाहरण दें कि तुम हमारे लिए हीरा हो, और अपने कीमती चीज़ की सबको फ़िक्र होती है इसलिए हमें तुम्हारी फ़िक्र है.. तो गलत ही होगा।
ये उसी तरह है कि ट्रेन में बैठी एक आंटी किसी लड़की को कहती हैं कि तुम ही बद्तमीज़ हो.. क्योंकि जब तुम देख रही हो कि वो तुम्हें ही घूर रहा है तो उसकी तरफ देखना बंद कर दो! वो आंटी पलटकर उस लड़के को डांटना अक्सर भूल जाती हैं कि तुम उसे ऐसे क्यों देख रहे हो? ये क्या तरीका है? जब ऐसी आंटियां लड़कों और अपने बेटों को फटकारना शुरू करेंगी तब शायद कुछ सुधरेगा।