बजट का दिन याद रखिएगा। ऐतिहासिक दिन था। ऐतिहासिक क्यों? क्योंकि सालों से चली आ रही बजट पेश करने की जो परंपरा थी उसमें थोड़ा बदलाव लाया गया था। बदलाव कैसा? आज तक जब भी बजट पेश किया जाता, तब रेल बजट और आम बजट अलग-अलग पेश किया जाता था।
लेकिन 2017-18 का रेल और आम दोनों ही बजट एक साथ पेश किया गया। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दोनों ही बजट पेश किए। टीवी वाले लोग बजट-बजट करके कल से ही पगलाए हुए थे। जरूरी भी है। हमारे आपके काम की बात है। बजट में हुए एलान के बाद पूरे साल जो सामान हैं वो महंगे होंगे या सस्ते ये तय होता है।
इकोनॉमिक सर्वे की रिपोर्ट भी आ गई। नोटबंदी का क्या असर हुआ इस बारे में कुछ ख़ास बताया नहीं गया। भविष्य के ऊपर इसे छोड़ दिया गया है। अब जब पूरा माहौल 'इकोनॉमीमय' हो रखा है। तो अपने काम की एक दो बात जान लीजिए। दो-तीन बहुत ही कॉमन टर्म हैं। जिसके बारे में कल से ही खूब सारी बातें हो रही हैं। आगे भी होती ही रहेंगी। तो बेहतर है आप भी वो एक दो टर्म आसान भाषा में समझ लें।
वो तीन टर्म जो जरूरी लगे। उनमें पहला है, जीडीपी।
सबसे पहले जीडीपी का क्या मतलब? जीडीपी का मतलब होता है, 'ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट'। हिंदी में कहते हैं, 'सकल घरेलू उत्पाद'। एक उदाहरण से समझ लें। मान लीजिए ये देश नहीं आपका घर है और आपके घर में 5 लोग रहते हैं। कोई कहीं काम करके कमाता है तो कोई अपना सामान बना के बेचता है। कोई और कुछ करता है तो आपके घर की जीडीपी होगी, आपके घर के 5 लोगों की पूरी कमाई। हर तरह से। एक टाइम लिमिट में, जैसे 1 साल में जीडीपी कितनी रही।
वैसे तो ये जितना आसान आपको लग रहा है। उतना आसान है नहीं। लेकिन आम भाषा में इसका मतलब यही है। एक और दूसरे तरीके से भी इसे कैलकुलेट करते हैं। और वो है खर्च। कुल कितना खर्च हम कर रहे हैं तो इसका भी कनेक्शन आपकी कमाई के साथ ही जुड़ा होता है। अगर देश के संदर्भ में देखें तो वहां भी इसे इसी तरह से देखा जाता है। इसे साल दर साल कैलकुलेट किया जाता है।
इसका महत्व ये है कि इसके आधार पर ही किसी देश की इकॉनमी की हालत का पता चलता है। अब इसी से इकोनॉमिक ग्रोथ कैसा रहा ये भी पता करते हैं। जैसे अगर पिछले साल की तुलना में इस साल की जीडीपी 5% ज्यादा रही तो इसका मतलब ये हुआ कि इकॉनमी में 5% की बढ़त हुई। और इसका सीधा संबंध महंगाई, बेरोजगारी जैसी चीजों से है। अगर जीडीपी बढ़ती है तो इससे ये अनुमान लगाया जाता है कि इस साल बेरोजगारी कम होगी। लेबर वेज बढ़ेंगे क्योंकि बेहतर अर्थव्यवस्था तो ज्यादा डिमांड। ज्यादा डिमांड तो ज्यादा हाजिरी मिलेगी।
रेपो रेट उसको कहते हैं, जिस रेट से रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया बाकी के बैंकों को पैसे उधार देती है। मतलब जैसे हमको-आपको बैंक वाले लोन देते हैं तो इन्ट्रेस्ट लेते हैं। ठीक वैसे ही रिज़र्व बैंक वाले भी बाकी के बैंको से भी कुछ ब्याज वसूलते हैं। इसे रेपो रेट कहते हैं। रेपो रेट के हेल्प से रिज़र्व बैंक इकॉनमी की हालत के हिसाब से रेट बढ़ाती घटाती है। मार्केट में कितने पैसे जाने हैं जिससे महंगाई को कंट्रोल किया जा सके।
रिवर्स रेपो रेट का मतलब होता है, बैंकों को जिस दर पर रिज़र्व बैंक से इंटरेस्ट मिलता है। जैसे हम और आप जब बैंक में अपना पैसा रखते हैं तो हमें बैंक से कुछ इंटरेस्ट मिलता है। ठीक ऐसा ही बैंकों के साथ भी होता है।
यहां भी मास्टर रिज़र्व बैंक ही होता है। अगर रिज़र्व बैंक को ऐसा लगता है कि मार्केट में जरूरत से ज्यादा कैश आ गया है तो आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देती है। जिससे बैंकों को अपना पैसा रिज़र्व बैंक में रखने के बदले कुछ ज्यादा इन्ट्रेस्ट मिले। होता ये है कि रिवर्स रेपो रेट बढ़ते ही बैंक मार्केट में पैसे का फ़्लो कम कर देती है और ज्यादा पैसे आरबीआई के पास जाने लगता है। इससे मार्केट में कैश पर कंट्रोल हो जाता है।
अब आगे से कोई बड़का ज्ञानी लोग बैठ के बड़ा-बड़ा ज्ञान देते रहे तो आराम से बैठे के सुनिएगा और समझिएगा। और जरूरत पड़े तो सवाल-जवाब भी करना है।