सामने आया चौंका देने वाला रिसर्च, देश के हर सातवें आदमी को है ये बीमारी
टीम फिरकी, नई दिल्ली
Published by:
Ayush Jha
Updated Tue, 24 Dec 2019 01:51 PM IST
प्रतिकात्मक तस्वीर
- फोटो : social media
अक्सर आपने बढ़े-बुजुर्गों को कहते सुना होगा कि ज्यादा पढ़ने से इंसान का दिमाग खराब हो जाता है, उनकी बातों को सुनकर हम पढ़े लिखे लोग नजरअंदाज कर देते थे कि इनकी उम्र के कारण ऐसा बोल रहे है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि वो सहीं कहते थे क्योंकि एक अध्यन में पता चला है कि भारत में हर सात में से एक व्यक्ति मानसिक रोग से पीड़ित है। हालांकि रोग की गंभीरता कम या ज्यादा हो सकती है।
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मानसिक रोग के कारण भारत पर पड़ने वाले बोझ को लेकर भारतीय चिकित्सा शोध परिषद (आईसीएमआर) ने 2017 में पहली बार इस पर व्यापक अध्ययन किया। अध्ययन में पता चला है कि 4.57 करोड़ लोग आम मानसिक विकार अवसाद और 4.49 करोड़ लोग बेचैनी से पीड़ित हैं। शोध में पता चला है कि भारत में मानसिक बीमारी साल दर साल बढ़ी है। इसमें जो तथ्य सामने आए हैं, उसके मुताबिक करीब 19.7 करोड़ लोग या हर सातवां भारतीय किसी न किसी तरह की मानसिक बीमारी से ग्रस्त है। अवसाद, बेचैनी, सिजोफ्रिनिया, द्विध्रुवीय रोग, आचरण संबंधी रोग और ऑटिज्म आदि मानसिक रोग के प्रकार हैं।
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आईसीएमआर के महानिदेशक प्रोफेसर बलराम भार्गव ने कहा, हमें अवसाद के रोगी सबसे ज्यादा मिले। ज्यादातर अधेड़ के इसकी चपेट में होने के कारण इसका देश की वृद्ध आबादी पर सबसे ज्यादा असर हो रहा है। सभी मानसिक रोगों में अवसाद का हिस्सा 33.8 फीसदी है। इसके बाद बेचैनी 19 फीसदी और सिजोफ्रिनिया के मरीज 9.8 फीसदी हैं।
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प्रो भार्गव ने बताया, चूंकि भारत में अवसाद खुदकुशी मौतों से जुड़ा है इसलिए इसे काबू करना हमारी सबसे बड़ी चिंता है। यह बीमारी पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में ज्यादा है। उन्होंने कहा कि 1990 से 2017 के बीच मानसिक रोग का प्रसार करीब दोगुना हो गया है। यह शोध हाल ही में लांसेट सैकियाट्री जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
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अध्ययन के मुताबिक बचपन व किशोरावस्था में होने वाले मनोरोग में बौद्धिक अक्षमता और सनकपन 4.5 फीसदी, आचरण संबंधी समस्या 0.8 फीसदी, ध्यान नहीं देने की बीमारी 0.42 फीसदी और ऑटिज्म (आत्मकेंद्रित) की बीमारी 0.35 फीसदी है। एम्स के मनोरोग विभाग के प्रोफेसर डॉ राजेश सागर ने कहा, भारत में मानसिक बीमारी तेजी से बढ़ रही है।
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मानसिक स्वास्थ्य सेवा उन्नत करने, जागरूकता, सामाजिक लांछन को खत्म करना और उपचार तक लोगों की पहुंच आसान बनाना वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है। उत्तर भारत के पिछड़े राज्यों में बच्चों व किशोरों में मानसिक रोग की दर सबसे ज्यादा है, जबकि वयस्क होने के दौरान यह दर विकसित दक्षिणी राज्यों में ऊंची है।