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भारत के इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) ने हाल ही में आरएलवी-टीडी एचईएक्स- 1 स्वदेशी यान यानी पुन: प्रयोग किए जा सकने वाले प्रक्षेपण यान के पहले प्रौद्योगिकी प्रदर्शन का सफल परीक्षण कर लिया है, लेकिन क्या आप जानते हैं अंतरिक्ष यात्रा का पहला चरण इसरो ने कब कैसे और किन हालातों में तय किया था। जितना रोचक सफर मंगल यान का है उससे भी अधिक रहस्मयी और रोमांचकारी सफर इसरो का है।
पहला रॉकेट शोध 1962 में
आपको बता दें कि भारत का पहला रॉकेट शोध 1962 में ही होमी भाभा और विक्रम साराभाई की अगुवाई में शुरू हो गया था और उन्हें सफलता तब मिली जब भारत ने थुम्बा में 21 नवम्बर 1963 में अपना पहला सॉउन्डिंग रॉकेट लॉन्च किया।
नारियल के पेड़ों में रखा लांच पैड बनाया
शायद आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत ने पहले रॉकेट को लॉन्च करने के लिए नारियल के पेड़ों में रखा लांच पैड बनाया था और उस समय कैथोलिक चर्च सेंट मैरी मुख्य कार्यालय हुआ करता था और हमारे वैज्ञानिकों ने बिशप हाउस को ही अपना प्रयोगशाला रूम बना रखा था।
रॉकेट के लिए साईकिल और बैलगाड़ी का प्रयोग
क्या आप जानते हैं भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के वैज्ञानिकों ने पहले राकेट को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए साईकिल का प्रयोग किया था और दूसरा राकेट जो कि काफी बड़ा और भारी था उसके लाने के लिए एक बैलगाड़ी का प्रयोग किया गया था।
350 से अधिक रॉकेट
1963 के बाद से भारत अब तक थुम्बा से 350 से अधिक रॉकेट बना कर लांच कर चुका है और इस काम में भारत की सहायता संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और सोवियत संघ जैसे देशों ने की है।