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चिल्लाओ मत!

प्रेम प्रकाश त्रिपाठी Updated Fri, 21 Apr 2017 02:40 PM IST
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Loudspeaker Row: Don't shout!
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अब आवाज निकली है तो दूर तलक जाएगी ही। फिर चाहे सोनू बोलें या लाउडस्पीकर। दोनों के अपने-अपने मकसद हैं। मशहूर गायक ने सवाल धर्मस्थलों पर लगे लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर उठाया है। लेकिन ये धर्मस्थलों के अलावा भी बजते हैं... अलग-अलग जगहों से वजहों से। ये अक्सर परेशान करते हैं। हम सबको ...कई बार तो अनायास ही मुंह से निकल पड़ सकता है ...कितनी जोर से चिल्ला रहा है। पास से गुजरते लोग कहते भी हैं ...अबे चिल्लाओ मत! आज बात ‘इसी चिल्ल पों की।’ 

अचानक मीडिया की सुर्खियों में आए लाउड स्पीकर का चुटीले अंदाज में विश्लेषण कर रहे हैं प्रेम प्रकाश त्रिपाठी

दिल्ली की गलियों में इन दिनों रोजाना सुबह से शाम तक टेंपो, ठेलों पर लाउडस्पीकर बजते हुए गुजरते हैं। एमसीडी चुनाव में जीत के लिए हर पार्टी जोर लगा रही है। हमारा नेता कैसा हो ...कुलदीप भंडारी जैसा हो। अबकी बार .... सरकार। आदि-आदि नारे। कान फोड़ू आवाज में बाकी कुछ सुनाई नहीं देता। गली संकरी है तो आवाज भी ज्यादा होती है और रेला देर तक ठहरता है। दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश को ही ले लीजिए। कुछ महीनों में नगर निकाय चुनाव होंगे। ऐसे ही परिस्थितियां देखने को मिलेंगी। विधानसभा चुनावों में भी जमकर लाउडस्पीकर बजे थे। मोदी से लेकर अखिलेश, माया, राहुल सबने हुंकार भरी थी। क्या पता किसी को उस आवाज से भी दिक्कत हुई हो। लेकिन कहने की हिम्मत न जुटा पाया हो। 

खैर, सोनू निगम का सेलिब्रिटी होना उनके काम आ गया। उस पर उन्होंने लाउडस्पीकर के जिस इस्तेमाल पर सवाल उठाया, उस पर जलजला तो आना ही था। सोशल मीडिया से उठी चिल्ल पों... टीवी मीडिया की बहस और फिर अखबारों के फ्रंट पेज एंकर तक पहुंच गई। सोनू ने कहा - मस्जिद के लाउडस्पीकर से निकलने वाली अजान की तेज आवाज उन्हें सोने नहीं देती। बाद में कही हुई बात को और साफ करते हुए बताया कि उन्होंने सवाल लाउडस्पीकर के बेजा इस्तेमाल पर उठाया था। वैसे - सोनू निगम का पुश्तैनी घर फरीदाबाद में है। इसे अब संत निरंकारी सत्संग भवन के नाम से जाना जाता है। सोनू का परिवार पुश्तैनी घर बेच चुका है, लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि इस निरंकारी सत्संग भवन में हर रविवार लाउडस्पीकर पर भजन होते हैं। ऐसे सत्संग आपकी-हमारी कालोनियों में भी आयोजित होते ही होंगे। नवरात्र के आसपास तो इनकी तीव्रता और संख्या दोनों बढ़ जाती हैं।

2014 की गर्मी में इसी लाउडस्पीकर ने मुरादाबाद के कांठ गांव में प्रशासन के हाथ-पांव फुला दिए थे। दो समुदायों के बीच बढ़े बवाल को थामने के लिए कई जिलों से फोर्स बुलानी पड़ी थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ऐसे ढेरों वाकये हैं, जब लाउडस्पीकर ने आग में घी का काम किया है। दादरी के इकलाख का वाकया तो नया ही है। तब भी खबरों में आया था कि मंदिर में लगे लाउडस्पीकर से एलान हुआ था कि इकलाख ने गोहत्या की है। नजीजा - इकलाख की जान गई और उससे उपजी राजनीति ने बिहार में बीजेपी का रथ रोक दिया।

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