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बाहुबली 2 द कन्क्लूजन - फिल्म को हमारी तरफ से साढ़े चार स्टार
2 घंटे 48 मिनट की यह फिल्म इतनी देर के लिए आपको आपसे चुरा लेती है। सीधे कहें तो फिल्म आपको वास्तविक दुनिया से दूर वीर और श्रृंगार रस से भरी ऐसी दुनिया में ले जाती है जहां हर पल रोमांच का सैलाब उमड़ता है और उसके आगोश में आप समा जाते हैं। दर्शक पर्दे के जरिए सीधे माहिष्मति साम्राज्य में उतर जाते हैं और बाहुबली की विजय गाथा का करीबी से अनुभव करते हैं। निर्देशक राजामौली ने इस फिल्म को करीब साल भर की देरी से जरूर रिलीज किया है, लेकिन फिल्म को बनाया बड़े करीने से है। शानदार निर्देशन, अभिनय, वीएफएक्स, साउंड एंड म्यूजिक से सजी फिल्म किसी भी हॉलिवुड एपिक से कम नहीं लगती है। सबसे अच्छी बात यह है कि फिल्म अपने आकर्षणों के साथ-साथ कहानी को भी बखूबी बयां करती है। फिल्म में ऐसे दृश्यों की भरमार है जब एक आम दर्शक का मुंह खुला रह जाता है। फिल्म के पहले पार्ट को ध्यान में रखे बिना दूसरे का रिव्यू करना ठीक नहीं होगा इसलिए दोनों की बात करना लाजमी है।
कहानी माहिष्मति साम्राज्य की है। दो भाई होते हैं... विक्रमदेव और बिज्जलदेव। बिज्जलदेव उम्र में बड़े होते हैं साथ ही एक हाथ से अपंग भी, लेकिन उनके अवगुणों को देखते हुए उन्हें राज सिंहासन न सौंपकर उनके छोटे भाई विक्रमदेव को सौंपा जाता है। विक्रमदेव की अकाल मृत्यु हो जाती है, जिसके बाद उनकी भाभी यानी राजमाता शिवगामी देवी अपनी समझदारी और सूझबूझ से राजपाठ चलाती हैं।
शिवगामी देवी का बालक होता है भल्लाल देव। विक्रम देव की पत्नी यानी महारानी भी पुत्र को जन्म देती हैं लेकिन उनका जीवन नहीं बच पाता है। उनके पुत्र की भी परवरिश राजमाता शिवगामी ही करती हैं। वह उसे नाम देती हैं अमरेंद्र बाहूबली। बाहुबली और भल्लाल देव, दोनों में से किसी एक को सिंहासन सौंपने के लिए तब तक इंतजार किया जाता है जब तक कि कोई एक अपने पराक्रम से उसके लायक होने का प्रमाण न दे दे। आखिरकार दुश्मन कालकेय से लड़ाई होती है और बाहुबली को राजा बनाने की घोषणा होती है।
बाहुबली देशाटन पर भेजे जाते हैं। वह माहिष्मति के वफादार रक्षक और मामा कटप्पा के साथ कुंतल राज्य पहुंचते हैं। कुंतल राज्य की राजकुमारी देवसेना को लुटेरों से लड़ता देख बाहुबली उन पर मोहित हो जाते हैं। इस दौरान वह देवसेना के सामने मंदबुद्धि होने का नाटक करते हैं लेकिन अचानक कुंतल राज्य पर पिंडारी लुटेरों का बड़ा समूह आक्रमण कर देता है और बाहुबली अपनी सूझबूझ और अतुल्यनीय पराक्रम से राज्य को बचा ले जाते हैं। यह देख देवसेना भी बाहुबली के साथ प्यार की पेंग भरने लगती हैं।
उधर बाहुवली के चचेरे भाई यानी भल्लाल देव को जब देवसेना की खूबसूरती के बारे पता चलता है तो वह भी उसे पाने के सपने देखने लगता है। वह राजमाता शिवगामी से देवसेना को पाने का वादा करवा लेता है।
बाद में शिवगामी को जब पता चलता है कि देवसेना और बाहुबली एक दूसरे से प्रेम करते हैं तो उन्हें उनका दिया हुआ वचन पूरा होता नहीं दिखाई देता है। इधर बाहुबली भी देवसेना को उसके प्राण और मर्यादा की रक्षा का वचन दे चुका होता है। आखिर में फैसला होता है कि भल्लाल देव को महाराज बनाया जाए।
भल्लाल देव महाराज तो बन जाता है लेकिन आवाम की नजरों में खुद को नीचा पाता है। आवाम मौके-मौके पर बाहुबली का गुणगान करती है। बाहुबली को जनता के दिलों से निकालने के लिए बिज्जलदेव और भल्लादेव तमाम षड़यंत्र रचते हैं। उनके षड़ंयंत्रों में राजामाता शिवगामी भी फंस जाती हैं और कटप्पा से बाहुबली को मारने का वचन ले लेती हैं। मजबूर कटप्पा बाहुबली को मार देता है।
देवसेना शिशु को जन्म देती हैं और उसे लेकर राजमाता शिवगामी के पास पहुंचती हैं। इधर कटप्पा शिवगामी देवी को उनकी भूल का एहसास करा चुके होते हैं। राजमाता महल के बाहर खड़ी भीड़ के सामने देवसेना के नवजात पुत्र को महेंद्र बाहुबली बुलाती हैं और माहिष्मति का महाराज घोषित करती हैं। इसके साथ ही वह उसे बचाने के लिए निकल जाती हैं। उनका साथ कटप्पा देते हैं। देवसेना को भल्लाल देव बंदी बना लेता है।
और आखिर में महेंद्र को जब पूरी कहानी पता चलती है तो वह प्रतिशोध लेने के लिए उसके समर्थन वाली जनता और कुंतल राज्य की बची हुई सेना के साथ माहिष्मति की ओर कूच करता है। कट्प्पा बाहुबली का साथ देते हैं। दिल की धड़कनें थामने वाली भयंकर लड़ाई होती है। पापी भल्लादेव मारा जाता है और फिल्म खत्म हो जाती है। तमन्ना भाटिया ने कुंतल राज्य की ही एक महिला सैनिक का रोल निभाया है, जो कि पहली फिल्म में तो ठीक-ठाक समय का था लेकिन दूसरे में वह अतिरिक्त कलाकार नजर आईं। इस बार फिल्म में कॉमेडी का भी तड़का लगाया गया है। पहली फिल्म में झरना सबसे बड़ा आकर्षण का केंद्र रहा था इस बार कई आकर्षण के केंद्र है। कुछ सीन ऐसे हैं जिनकी कल्पना भी मुश्किल लगती है और जो आपको हतप्रभ छोड़ जाते हैं।
बाहुबली की भूमिका में प्रभाष हैं। प्रभाष ने इस फिल्म को करने के लिए तीन साल तक कोई दूसरी फिल्म साइन नहीं की। उन्होंने करीब तीस किलो वजन भी बढ़ाया और एक करोड़ रुपये का जिम का सामान भी घर मंगवाया। भल्लालदेव राणा डग्गूबाती बने हैं और वह अंत तक फिल्म के नायक को पीटते नजर आते हैं। देवसेना के किरदार में अनुष्का शेट्टी हैं जिनकी खूबसूरती एक तरफ है और फिल्म एक तरफ। राजमाता शिवगामी का रोल रमैया कृष्णा ने निभाया है, उनकी जगह किसी दूसरे पात्र को नहीं रखा जा सकता है। कटप्पा के रोल में सत्यराज बेमिसाल हैं और भल्लाल देव के पिता यानी बिज्जलदेव की भूमिका नासेर ने निभाई है, उनकी अदाकारी ही कही जाएगी कि दर्शकों को उनसे घृणा होने लगती है । सभी पात्र अपनी जगह फिट हैं और प्रभावी हैं। कुलमिलाकर अप्रैल की तपती दोपहरी में, घर या दफ्तर में बोर हो रहे हैं और जीवन में एकसरता और नीरसता महसूस कर रहे हैं तो बाहुबली देख आइए, जो एक चटपटे गोलगप्पे की तरह आपके गले के नीचे उतर जाएगी और जिसके चटकारे आप हॉल से निकलने के बाद भी महसूस करेंगे।