दीपाली अग्रवाल, टीम फिरकी, नई दिल्ली
Updated Wed, 03 Jan 2018 12:18 PM IST
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हमारा शरीर ही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है, क्योंकि स्वस्थ तन हो तो मन भी स्वस्थ रहता है । इस यंत्र से ही इंसान के सभी काम भी संभव हैं और जब भी इस इंसानी मशीनरी में कुछ गड़बड़ी होती है तो हम तनावग्रस्त हो जाते हैं । हम हर संभव प्रयास करते हैं कि उस गड़बड़ी को जल्द से जल्द से ठीक किया जा सके । लेकिन अगर एक दिन पता चले कि ये मशीन लगभग पूरी तरह से खराब हो चुकी है, तब ये बात शरीर के साथ साथ दिमाग को भी असंतुलित कर देती है । डॉक्टरी भाषा में इसको पैरालाईज कहा गया है ।
इसी बीमारी से ग्रस्त हैं सहारनपुर के नेशनल स्कूल की 64 साल की प्रिंसिपल उमा शर्मा । पिछले 7 सालों से उमा का गले से नीचा का पूरा हिस्सा पैरालाईज्ड है, वह सिर्फ अपने सिर और हाथों को ही हिला सकती हैं । उन्होंने 1992 में एक स्कूल की स्थापना की थी लेकिन पिछले कुछ सालों से उनकी बीमारी का वजह से उनका स्कूल में जा पाना असंभव था । लेकिन किसी ने ठीक ही कहा है कि तकलीफों से अपने हौंसले मत टूटने दो बल्कि अपनी तकलीफ को बता दो कि आपका हौंसला कितना बड़ा है। उमा ने ऐसा ही कर दिखाया ।इतनी तकलीफों के बाद भी उमा पूरी मेहनत से अपना स्कूल चला रही हैं । वह बिस्तर पर लेटे हुए ही बच्चों की वर्चुअल क्लास लेती हैं ।
सहारनपुर के नुमाईश कैंप में रहने वाली उमा का संघर्ष सिर्फ इतना ही नहीं रहा है, उमा की जीवन कहानी हम सभी के लिए प्रेरणा के रूप में है । 1991 में उनके पति की देहांत हो गया, ऐसे सदमे से गुजरने के बाद 1992 में उन्होंने स्कूल की स्थापना की । कुछ समय बाद ही उनके एकमात्र बेटे की 21 साल में किसी हादसे में मौत हो गई । वो इस हादसे से भी उबरने की एक कोशिश कर रही थीं कि 2007 में वो आंशिक रूप से पैरालिसिस का अटैक पड़ गया। ऐसी विकट स्थिति में उन्हें मात्र उनकी बेटी का ही सहारा था लेकिन नियति थी कि 2010 में उनकी बेटी की भी मौत हो गई ।
शारीरिक और मानसिक दोनों ही चोट झेल रहीं उमा के जख्म वक्त के साथ और भी गहरे होने लगे और उनका शरीर पूरी तरह से पैरालाईज्ड हो गया । इन तमाम समय की मार से चोटिल होने बाद जब शायद जीने की इच्छा भी शायद ही बचे ऐसे में उमा ने हार नहीं मानी और अपने शिक्षण कार्य में व्यस्त रहने का मन बनाया । वह अपने टैबलेट से सीधे बच्चों और शिक्षकों से बात करती हैं । स्कूल प्रबंधक ने बताया किस पूरे स्कूल में सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं जिससे वह अपने टैबलेट से पूरे स्कूल पर नजर रख सकती हैं।
इस स्कूल में 8वीं क्लास तक की पढ़ाई होती हैं और सभी अपनी प्रिंसिपल की सराहना करते नजर आते हैं । उमा का ये संघर्ष ना सिर्फ उनके स्कूल के लिए गर्व की बात है बल्कि वह हम सब के लिए भी एक प्रेरणादायह स्त्रोत हैं