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प्राचीनकाल की हंसोड़ सभ्यताओं में दिमाग के दही को पाक कला का काफी परिष्कृत नमूना माना जाता था। राजा-महाराजा अपनी-अपनी समझ और हैसियत के हिसाब से बीरबल व तेनालीराम जैसे खानसामे भी पाला करते थे, जो समय-समय पर उन्हें दिमाग के दही के साथ बकैती की खिचड़ी परोसते थे। हालांकि, मौजूदा दौर में पकने-पकाने के बहुत सारे तरीके मौजूद हैं। लेकिन, दिमाग के दही का परंपरागत स्वाद आत्मा को जो संतुष्टि देता है, उसका कोई मुकाबला नहीं।
खासतौर पर होली जैसे त्योहार पर अपने पाठकों को पकाने के लिए हम ढेर सारे पुराने चावल और नई आमद की कढ़ी परोस सकते हैं। लेकिन, यह रुटीन की रेसिपी है। इसलिए अपने पाठकों को इस बार चखाएंगे दिमाग के दही का स्वाद। यूं तो दिमाग का दही पूरी दुनिया की प्राचीनतम सभ्यताओं के पारंपरिक व्यंजनों में शामिल है। इस चटपटी और मजेदार रेसिपी को तैयार करने के कई तरीके हैं। मैं आपको दिमाग का दही बनाने की प्रक्रिया बताऊं, उससे पहले यह जान लेना काफी दिलचस्प होगा कि दिमाग का दही बनाया जाना पौराणिक काल से चला आ रहा है और दुनियाभर की तमाम सभ्यताओं और संस्कृतियों में इसे बनाए जाने का उल्लेख मिलता है।
इसके अलावा दिमाग के दही बनाने के पीछे कई वैज्ञानिक प्रमाण भी मौजूद हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक दिमाग के ठोस हिस्से का 60 फीसदी हिस्सा फैट से बना है और दिमाग के कुल संघटन में 75 फीसदी मात्रा पानी की होती है। मोटे तौर पर दिमाग, दही के जैसा ही होता है, जिसमें बनने या बनाने जैसा कुछ नहीं होता। लेकिन हम इंसान हैं, रचना करना हमारा धर्म है, और हम ठहरे धार्मिक लोग, तो धर्म को धारण करना हमारा पवित्र धार्मिक कर्तव्य है। यहां धर्म के अलावा मामला कला और साहित्य का भी है।
हम जानते ही हैं कि कलाओं की उन्नति और उत्कर्ष के लिए कैसे 'जड़मति' किस्म के 'सुजान' दशकों में एम.ए. और सदियों में पीएचडी करते हैं। बने बनाए दही को फिर से बनाते हैं, दही की छाछ बनाकर रायता बनाकर भी फैलाते हैं और फिर निष्कर्ष निकालते हैं कि फैलने-फैलाने की जो आजादी 'रायता' हमें देता है, वह दही कभी नहीं दे सकता और इसी बिना पर दही को बुर्जुआ और रायते को सर्वहारा का प्रतीक घोषित कर देते हैं। यह बात दीगर है कि वे खुद पूरे देश के दिमाग का दही बना रहे होते हैं और इस उम्मीद में बैठे रहते हैं कि कब इस दही में मूर्खता का पानी मिले और वे इसमें बौद्धिक मसालेदानी से निकालकर फटाफट कुतर्क की हींग, छद्म तथ्यों का जीरा और लच्छेदार भाषा का धनिया पाउडर डाल गलीज सड़ांध वाला रायता बना दें
खैर, इन्हें जाने दें। रायता बनाने दें। अगर ये समय-समय पर रायता नहीं बनाएं और फैलाएं, तो दही का महत्व और प्रभाव क्षीण हो जाएगा। बहरहाल, दिमाग का दही बनाने के लिए आपको सिर्फ आदमी को जबरन बैठाकर अपनी पकाऊ बातें सुनाने की जरूरत होती है। हालांकि इसके दूसरे तरीके भी हैं, जैसे कि अपना लिखा हुआ जबरन पढ़ाया जा सकता है या अपनी बेसुरी आवाज में उगली गई कविताएं सुनाई जा सकती हैं। लेकिन ऐसा करते समय कई तरह की सावधानियों की जरूरत होती है। मसलन, पहली चीज तो यही है कि जिसके दिमाग का दही बनाना हो, पहले उसकी हिस्ट्री जरूर जान लें।
जिस व्यक्ति के बारे में जितनी पुरानी और टुच्ची बातें आप जानते होंगे, उसके दिमाग का दही उतना ही लजीज बनता है। हिस्ट्री के साथ-साथ आपको उस व्यक्ति की बेसिर-पैर की महत्वाकांक्षाओं और रंग-रंगीले सपनों की जानकारी भी होनी चाहिए। इन्हें दिमाग का दही बनाते वक्त आंच कम होने पर आंच की जगह इस्तेमाल किया जा सकता है। जब भी दिमाग का दही बनाएं, साथ में सेंस ऑफ ह्यूमर का पानी जरूर रखें, ज्यादा मथने पर दही आग पकड़ सकता है और इस आग से आपके जीवन के बाग में संकट के बादल फट सकते हैं।